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जैनधर्म
वन्दनाको जाते हुए सबसे पहले एक विशालकाय मूर्तिके दर्शन होते हैं। यह खड़ी हुई मूर्ति भगवान ऋषभदेवकी है, इसकी ऊँचाई ८४ फीट है। इस बावन गजाजी भी कहते हैं। सं० ५२२३ में इसके जीर्णोद्धार होनेका उल्लेख मिलता है । पहाड़पर २२ मन्दिर हैं । प्रतिवर्ष पौष सुदी ८ से १५ तक मेला होता है।
गुजरात तथा महाराष्ट्र प्रान्त तारंगा-यह प्राचीन सिद्ध क्षेत्र गुजरात प्रान्तके महीकाँटा जिलेमें पश्चिमीय रेलवेके तारंगा हिल नामके स्टेशनसे तीन मील पहाड़के ऊपर है। यहाँसे वरदत्त आदि साढ़े तीन करोड़ मुनि मुक्त हुए हैं। यहाँपर दोनों सम्प्रदायोंके अनेक मन्दिर और गुमटियाँ हैं।
गिरनार-सौराष्ट्र प्रान्तमें जूनागढ़के निकट यह सिद्धक्षेत्र वर्तमान है । जूनागढ़ स्टेशनसे ४-५ मीलकी दूरीपर गिरिनार पर्वतकी तलहटी है, वहाँ दोनों सम्प्रदायोंकी धर्मशालाएँ हैं पहाड़पर चढ़ने के लिये धर्मशालाके पाससे ही पक्की सीड़ियाँ प्रारम्भ हो जाती हैं और अन्ततक चली जाती हैं । २२ वें तीर्थकर श्रीनेमिनाथने इसी पहाड़के सहस्राम्र वनमें दीक्षा धारण करके तप किया था। यहीं उन्हें केवलज्ञान हुआ था और यहींसे उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था। उनकी वाग्दत्ता पत्नी राजुलने भी यहीं दीक्षा ली थी। पहले पहाड़पर पहुँचनेपर एक गुफामें राजुलको मूर्ति बनी हुई है। तथा दिगम्बर और श्वेताम्बरोंके अनेक मन्दिर बने हुए हैं। दूसरे पहाड़पर चरण चिह हैं यहाँसे अनिरुद्ध कुमारने निर्वाण प्राप्त किया था। तीसरेसे शम्भु कुमारने निर्वाण लाभ किया था। चौथे पहाड़पर चढ़नेके लिये सीड़ियाँ नहीं हैं इसलिये उसपर चढ़ना बहुत कठिन है। यहाँसे श्री कृष्णजीके पुत्र प्रद्मम्न कुमारने मोक्ष प्राप्त किया है
और पाँचवें पहाड़से भगवान् नेमिनाथ मुक्त हुए हैं। सब जगह चरण चिह्न हैं तथा कहीं-कहीं पहाड़ में उकेरी हुई जिन