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विविध
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मुकुट, और सिंदूर भी चढ़ता है। इसकी बड़ी मान्यता है । दोनों सम्प्रदायवाले इसकी पूजा करते हैं।
आबू पहाड़ -- पश्चिमी रेलवेके आबू रोड स्टेशनसे आबू पहाड़के लिये मोटरें जाती हैं। पहाड़पर सड़क के दायीं ओर एक दिगम्बर जैन मन्दिर है, तथा बायीं ओर दैलवाड़ाके प्रसिद्ध श्वेताम्बर मन्दिर बने हुए हैं, जिनमेंसे एक मन्दिर विमलशाहने वि० सं० १०८८ में १८ करोड़ ५३ लाख रुपये खर्च करके बनवाया था । दूसरा मन्दिर वस्तुपाल तेजपालने बारह करोड़ ५३ लाख रुपये खर्च करके बनवाया था । संगमरमरपर छीनीके द्वारा जो नक्काशी की गई है वह देखने की ही चीज है । दोनों विशाल मन्दिरोंके बीच में एक छोटासा दि० जैन मन्दिर भी है।
अचलगढ़ - देलवाड़ासे पाँच मोल अचलगढ़ है। यहाँ तीन श्वेताम्बर मन्दिर हैं । उनमेंसे एक मन्दिरमें सप्तधातुकी १४ प्रतिमाएँ विराजमान हैं ।
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सिद्धवरकूट - इन्दौरसे खण्डवा लाईन पर मोरटक्का नामका स्टेशन है । वहाँसे ओंकारजी जाते हैं जो नर्मदाके तटपर है । यहाँसे नावमें सवार होकर सिद्धवरकूटको जाते हैं । यह क्षेत्र रेवानदी के तटपर है । यहाँसे दो चक्रवर्ती व दस कामदेव तथा साढ़े तीन करोड़ मुनि मुक्त हुए हैं।
ऊन - खण्डवासे ऊन मोटरके द्वारा जाया जाता है । ३-४ घंटे का रास्ता है । यहाँ एक प्राचीन मन्दिर है जो सं० १२१८ का बना हुआ है । दो और भी प्राचीन मन्दिर हैं जो जीर्ण हो गये हैं । यह क्षेत्र कुछ ही वर्ष पहले प्रकाशमें आया है । इसे पावागिरि सिद्धक्षेत्र कहा जाता है ।
बड़वानी - बड़वानीसे ५ मील पहाड़पर जानेसे बड़वानी क्षेत्र मिलता है। बड़वानीसे निकट होनेके कारण इस क्षेत्रको बढ़वानी कहते हैं वैसे इसका नाम चूलगिरि है । इस चूलगिरि - से इन्द्रजीत और कुम्भकर्णने मुक्ति प्राप्त की थी । क्षेत्रकी