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जैनधर्म
तालाबके बीचमें है । प्रतिवर्ष कार्तिक सुदी ८ से १५ तक मेला भरता है ।
कुण्डलपुर - सेन्ट्रल रेलवेकी कटनी-बीना लाईनपर दमोह स्टेशन है | वहाँसे लगभग २५ मीलपर यह क्षेत्र है। इस क्षेत्रपर कुण्डलके आकारका एक पर्वत है इसीसे शायद इसका नाम कुण्डलपुर पड़ा है । पर्वत तथा उसकी तलहटी में सब मिलाकर ५९ मन्दिर हैं । पर्वतके मन्दिरोंके बीच में एक बड़ा मन्दिर है, इसमें एक जैन मूर्ति विराजमान है जो पहाड़को काटकर बनाई गई जान पड़ती है । यह मूर्ति पद्मासन है फिर भी इसकी ऊँचाई ९-१० फुट से कम नहीं है । यह भगवान महावीरकी मूर्ति मानी जाती है । इस प्रान्तमें इस मूर्तिकी बड़ी मान्यता है । दूर-दूरसे लोग इसकी पूजा करनेके लिये आते हैं। इसके माहात्म्यके सम्बन्धमें अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं । महाराजा छत्रसालके समय में उन्हींकी प्रेरणासे इसका जीर्णोद्धार हुआ था, जिसका शिलालेख अंकित है ।
सागरसे ४८ मीलपर वीनाजी क्षेत्र है यहाँ तीन जैन मन्दिर हैं जिनमें एक प्रतिमा शान्तिनाथ भगवानकी १४ फुट ऊँची तथा एक प्रतिमा महावीर भगवानकी १२ फुट ऊँची विराजमान है । और भी अनेक मनोहर मूर्तियाँ हैं । सागरसे ३८ मील मालथौन गाँव है। गाँवसे १ मीलपर एक जैन मंदिर है। इसमें १० गजसे लेकर २४ गजतककी ऊँची खड़े आसनकी अनेक प्रतिमाएँ हैं । ललितपुरसे १० मीलपर सैरोन गाँव है । वहाँसे आधा मीलपर ५-६ प्राचीन जैन मन्दिर हैं । चारों ओर कोट है । यहाँ एक मूर्ति २० गज ऊँची शान्तिनाथ भगवानकी है, तथा चार पाँच फुट ऊँची सैकड़ों खण्डित मूर्तियाँ हैं।
देवगढ़ – सेन्ट्रल रेल्वेके ललितपुर स्टेशनसे १९ मील एक पहाड़ीपर यह क्षेत्र स्थित है । यह सचमुच देवगढ़ है । यहाँ अनेक प्राचीन जिनालय हैं और अगणित खण्डित मूर्तियाँ हैं । कलाकी दृष्टिसे भी यहाँकी मूर्तियाँ दर्शनीय हैं। कुशल कारीगरों