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________________ जैनधर्म ३२६ शान्तियण्ण-जैन सेनापति शान्तियण्णके पिताने युद्ध में शत्रुओंको परास्त करते हुए अपने प्राण दिए थे। इससे नरसिंहने उसके पुत्र शान्तियण्णको कसगुण्डका स्वामी और सेनाका दण्डनायक बनाया था। उसके गुरु मल्लिषेण पण्डित थे। रेचरस-शिलालेखमें लिखा है कि वल्लालदेवकी रत्नत्रय और धर्ममें दृढ़ता सुनकर कलचुरि कुलके सचिवोत्तम रेचरसने वल्लालदेवके चरणोंमें आश्रय पाकर आरसीकेरेमें सहस्रकूट चैत्यालयकी स्थापना की और मन्दिरकी व्यवस्थाके लिये राजा वल्लालसे हन्दरहालु ग्राम प्राप्तकर अपने वंशके गुरु सागरनन्दि सिद्धान्तदेवको सौंप दिया। यह रेचरस पहले सन् १९८२ में कलचूरि नरेश बिज्जलका दण्डनायक था। उसे कलचुरि नरेशोंसे देश निले थे। उसने सन् १२०० के लगभग शान्तिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा कराई थी। बूचिराज-यह होय्सल बल्लाल द्वितीयका सेनापतिथा । एक लेखमें उसे मन्त्रीश्वर और सान्धिविग्रहिक कहा है। उसने सन् ११७३ में राजावल्लाल के राज्याभिषेकके समय सीगेनाडके मारिकलि स्थानमें त्रिकूट जिनालय बनवाया और मन्दिरकी पूजा, जीर्णोद्धार आदिके लिए एक गाँव भेंट किया था। इरुगप्प-विजयनगर साम्राज्यको जिन जैन मंत्रियों और सेनापतियोंने अपनी सेवासे उपकृत किया था उनमें इरु गप्पका नाम विशेष उल्लेखनीय है । वह महामंत्री और सेनापति दोनों था। उसके पिता चैचय राजा हरिहरके कुलक्रमागत मंत्री और दण्डनायक थे । इरुगप्प ने विजयनगर में एक मन्दिर बनवाया था और उसमें कुन्थुनाथ जिनकी स्थापना की थी। ___ इस तरह दक्षिण भारतके राजवंशोमें कितने ही जैनधर्मके भक्त वीर सेनापति और मंत्री हुए हैं, जिन्होंने अपने शासनकालमें शूरवीरता और धर्मवीरताका समान परिचय दिया है । __ कलचूरि राजा कलचूरि वंश प्रारम्भमें जैनधर्मका पोषक था। पाँचवीं
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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