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सामाजिक रूप
२९९ ३. सम्प्रदाय और पन्थ दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंके उपलब्ध साहित्यके आधारसे यह पता चलता है कि विक्रमकी दूसरी शताब्दीमें विशाल जनसंघ स्पष्टरूपसे दो भागों में विभाजित हो गया और इस विभागका मूल कारण साधुओंका वस्त्र परिधान था । जो पभ साधुओंकी नग्नताका पक्षपाती था और उसे ही महावीरका मूल आचार मानता था वह दिगम्बर कहलाया । इमको मूलसंघ नामसे भी कहा है । और जो पक्ष वस्त्रपात्रका समर्थन करता था वह श्वेताम्बर कहलाया। दिगम्बर शब्दका अर्थ है-दिशा ही जिनका वस्त्र हैं, अर्थात् नग्न । और श्वेताम्बर शब्दका अर्थ है-सफेद वस्त्रवाला। इस तरह प्रारम्भमें यद्यपि साधुओंके वस्त्रपरिधानको लंकर ही संघभेद हुआ किन्तु बादको उसमें भेदकी अन्य भी मामग्री जुटती गयी
और धीरे-धीरे दोनों सम्प्रदायोंमें भी अनेक अवान्तर पन्थ पैदा हो गये। किन्तु भदके कारणोंपर दृष्टिपात करनेसे पता चलता है कि जैनधर्मके विभिन्न सम्प्रदायांमें नात्विक दृष्टिसे भेद नहीं है, बल्कि जो कुछ भेद है वह अधिकांशमें व्यावहारिक दृष्टिसे ही है। सभी जैन मम्प्रदाय और पन्थ अहिंसा
और अनेकान्तवादके अनुयायी हैं, आत्मा, परमात्मा, मोक्ष, संसार आदिके स्वरूपके विपय में उनमें कोई भेद नहीं है। सातों तत्वोंका स्वरूप सभी एकमा मानते हैं. कुछ परिभाषाओं वगैरहको छोड़कर कर्मसिद्धान्तमें भी कोई मार्मिक भेद नहीं है। फिर भी जो भेद है वह एमा है जो मिटाया नहीं जा सकता। किन्तु उस भेदके कारण जो दिलोंमें भंदकी दीवार खड़ी हो चुकी है वह अवश्य गिरायी जा सकती है। अन्तु, प्रत्येक सम्प्रदाय और उसके अवान्तर पन्थोंका परिचय निम्न प्रकार है
१. दिगम्बर सम्प्रदाय दिगम्बर सम्प्रदायके साधु नग्न रहते हैं। वे जीव जन्तु