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जैनधर्म
भारतवर्षके एक बहुत बड़े भागमें फैला हुआ था। दूसरे जैनोंने बहुत बड़ी संख्यामें धार्मिक ग्रन्थ ताड़पत्रोंपर लिखवाये और चित्रित करवाये थे। वि० सं० ११५७ की चित्रित निशीथचूर्णिकी प्रति आज उपलब्ध है जो जैनाश्रित कलामें अति प्राचीन है। १५वीं शतोके पूर्वकी जितनी भी कलात्मक चित्रकृतियाँ मिलती हैं वे केवल जैन ग्रन्थोंमें ही प्राप्य हैं। __ आज तक जो प्राचीन जैन साहित्य उपलब्ध हुआ है उसका बहुभाग ताड़पत्रोंपर लिखा हुआ मिला है। अतः भारतीय चित्रकलाका विकास ताड़पत्रोंपर भी खूब हुआ है । मुनि जिनविजयजीका लिखना है कि चित्रकलाके इतिहास और अध्ययनकी दृष्टिसे ताड़पत्रकी ये सचित्र पुस्तकें बड़ी मूल्यवान् और आकर्षणीय वस्तु हैं।
मद्रास गवर्नमेण्ट म्यूजियमसे "Tirupatti Kunram' नामक एक मूल्यवान् ग्रन्थ श्री टी० एन० रामचन्द्रन द्वारा लिखित प्रकाशित हुआ है। इसमें प्रकाशित चित्रोंसे दक्षिण भारतकी जैन चित्रकला पद्धतिका अच्छा आभास मिलता है। इनमें से अधिकांश चित्र भगवान् ऋषभदेव और महावीरको जीवन घटनाओंपर प्रकाश डालते हैं। उनसे उस समयके पहनाव नृत्यकला आदिका परिचय मिलता है। ___ ताड़पत्रोंको सुरक्षित रखनेके लिए काष्ठ-फलकोंका प्रयोग किया जाता था । अतः उनपर भी जैनचित्र कलाके सुन्दर नमूने मिलते हैं।
जैन चित्रकलाके सम्बन्धमें चित्रकलाके मान्य विद्वान् श्री एन० सी० मेहताने जो उद्गार प्रकट किये हैं वे उसपर प्रकाश डालनेके लिए पर्याप्त होंगे। वे लिखते हैं-"जैन चित्रोंमें एक प्रकार की निर्मलता, स्फूर्ति और गतिवेग है, जिससे डा० आनन्दकुमार स्वामी जैसे रसिक विद्वान् मुग्ध हो जाते हैं।
१. भारतीय चित्रकला पृ० ३३ ।