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जैन साहित्य
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प्रभाचन्द्र (ई० सन् की ११वीं शती) आचार्य प्रभाचन्द्र एक बहुश्रुत दार्शनिक विद्वान थे। सभी दर्शनों के प्रायः सभी मौलिक ग्रन्थोंका उन्होंने अभ्यास कियाथा। यह बात उनके रचे हुए न्यायकुमुदचन्द्र और प्रमेय-कमल-मार्तण्ड नामक दार्शनिक ग्रन्थोंके अवलोकनसे स्पष्ट हो जाती है। इनमें से पहला ग्रन्थ अकलंकदेवके लघीयस्त्रयका व्याख्यान है और दूसरा आचार्य माणिक्यनन्दिके परीक्षामुख नामक सूत्र ग्रन्थका । श्रवणवेलगोलाके शिलालेख नं०४० (६४) में इन्हें शब्दाम्भोरुहभास्कर और प्रथित तर्क ग्रन्थकार बतलाया है। इन्होंने शाकटायन व्याकरणपर एक विस्तृत न्यास ग्रन्थ भी रचा था जिसका कुछ भाग उपलब्ध है। इनके गुरुका नाम पद्मनन्दि सैद्धान्तिक था।
वादिराज (ई० स० ११वों शती) वादिराज तार्किक होकर उच्चकोटिके कवि थे। षट्तर्कषण्मुख, स्याद्वादविद्यापति और जगदेकमल्लवादी उनकी उपाधियाँ थीं। नगर ताल्लुकाके शिलालेख नं० ३९ में बताया है कि वे सभामें अकलंक थे, प्रतिपादन करनेमें धर्मकीर्ति थे, बोलनेमें बृहस्पति थे और न्यायशास्त्रमें अक्षपाद थे। उन्होंने अकलंकदेवके न्यायविनिश्चयपर विद्वत्तापूर्ण विवरण लिखा है जो लगभग बीस हजार श्लोक प्रमाण है। तथा शक सं० ९४७ (ई० सं० १०२५) में पार्श्वनाथचरित रचा जो बहुत ही सरस प्रौढ़ रचना है । अन्य भी कई ग्रन्थ और स्त्रोत्र इन्होंने बनाये हैं । इनके गुरुका नाम मतिसागर था।
यह तो हुआ कुछ प्रसिद्ध दिगम्बर जैनाचार्योंका परिचय । अब कुछ श्वेताम्बर जैनाचार्योंका परिचय दिया जाता है। इन आचार्योंमें उमास्वामीकी उमास्वाति नामसे तथा सिद्धसेनकी सिद्धसेनदिवाकर नामसे श्वेताम्बर सम्प्रदायमें भी बहुत प्रतिष्ठा है । और वह इनको श्वेताम्बराचार्य रूपसेही मानता है।