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जैनधर्म
नियुक्तिकार भद्रबाहु भद्रबाहु नामके दो आचार्य हो गये हैं। यह दूसरे भद्रबाहु विक्रमकी छठी शतीमें हुए हैं। वे जातिसे ब्राह्मण थे। प्रसिद्ध ज्योतिषी वराहमिहिर इनका भाई था। इन्होंने आगमों पर नियुक्तियोंकी रचना की तथा अन्य भी अनेक ग्रन्थ बनाये ।
मल्लवादी यह प्रबल तार्किक थे। आचार्य हेमचन्द्रने अपने व्याकरणमें लिखा है कि सब तार्किक मल्लवादीसे पीछे हैं। इनका बनाया हुआ नयचक्र ग्रन्थ बहुत महत्त्वपूर्ण है जिसका पूरा नाम 'द्वादशार नयचक्र' है। मूल ग्रन्थ तो उपलब्ध नहीं है किन्तु उसकी सिंह क्षमाश्रमण कृत टीका मिलती है। आचार्य हरिभद्रने अपने 'अनेकान्त जयपताका' ग्रन्थमें इनका वादिमुख्य करके उल्लेख किया है, अतः इतना निश्चित है कि ये विक्रमकी आठवीं शतीसे पहिले हुए हैं।
जिनभद्रगणि (ई० ६-७वीं शती) । जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण एक बहुत ही समर्थ और आगमकुशल विद्वान थे। इनका विशेषावश्यक भाष्य नामका एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। उसीके कारण भाष्यकार नामसे इनकी ख्याति है। इस ग्रंथमें उन्होंने सिद्धसेनके विचारोंका खण्डन भी किया है। विशेषणवती, आदि अन्य भी अनेक ग्रंथ इनके रचे हुए हैं। आचार्य हेमचन्द्रने इन्हें उत्कृष्ट व्याख्याता बतलाया है।
हरिभद्र (ई० ७००-७५०) हरिभद्रसूरि श्वेताम्बर सम्प्रदायके बहुमान्य विद्वान हुए हैं। इन्होंने संस्कृत और प्राकृतमें अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है। इनके रचे हुएप्रन्थोंमें अनेकान्त प्रवेश, अनेकान्त-जयपताका,