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________________ जैन साहित्य २६३ त्यका तुलनात्मक तथा ऐतिहासिक विवेचन करनेकी भी परम्परा चल पड़ी है जिसका श्रेय सर्वश्री नाथूराम प्रेनी, जुगलकिशोर मुख्तार, पं० सुखलाल और मुनि जिनविजय आदि जैन विद्वानोंको है । इस दृष्टिसे प्रेमीजी का 'जैन साहित्य और इतिहास', मुख्तार सा० की 'पुरातन वाक्य सूची' की प्रस्तावना तथा 'समन्तभद्र' नामक पुस्तक दृष्य है । पखण्डागम, कसायपाहुड और न्यायकुमुदचन्दकी हिन्दी प्रस्तावनाएँ भी तुलनात्मक और ऐतिहासिक दृष्टिकोणसे अध्ययन करनेवालोंके लिए बहुत कामकी हैं । जिज्ञासुओं को उनका अध्ययन करना चाहिये । अन्वेषकोंके लिए जैन साहित्य में प्रचुर सामग्री मौजूद है । कुछ प्रसिद्ध जैनाचार्य भगवान महावीरके पश्चात् कितने ही प्रसिद्ध प्रसिद्ध आचार्य और ग्रन्थकार हुए हैं जिन्होंने अपने सदाचार और सद्विचारोंसे न केवल जैनधर्मको अनुप्राणित किया किन्तु अपनी अमर लेखनीके द्वारा भारतीय वाङमयको भी समृद्ध बनाया । नीचे कुछ ऐसे प्रसिद्ध आचार्यों और ग्रन्थकारांका परिचय संक्षेपमें कराया जाता है । गौतम गणधर ( ५५७ ई० पूर्व ) यह भगवान महावीरके प्रधान गणधर ( शिष्य ) थे । मूल नाम इन्द्रभूति था, जाति त्राह्मण थे । वेद वेदाङ्गमें पारंगत थे । जब केवलज्ञान हो जानेपर भी भगवान महावीरकी वाणी नहीं खिरी तो इन्द्रको इस बातकी चिन्ता हुई। इसका कारण जानकर वह इन्द्रभूतिके पास गया और युक्तिसे उसे भगवान महावीरकं समवसरण में ले आया । संशय दूर होते ही इन्द्रभूतिने प्रत्रज्या ले ली और भगवानके प्रधान गणधर हुए। भगबान्का उपदेश सुनकर अवधारण करके इन्होंने द्वादशाङ्ग श्रुतकी रचना की । जब कार्तिक कृष्णा अमावस्याके प्रातः भगवान्
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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