________________
२६२
जैनधर्म
अच्छा दूसरा प्राकृत व्याकरण आज उपलब्ध नहीं है। कोषों में भी हेमचन्द्रका अभिधानचिन्तामणि, अनेकार्थसंग्रह, देशीनाममाला, निघंट शेप, अभिधानराजेन्द्र तथा 'पाइअसहमहण्णव' अपूर्व कोप ग्रन्थ हैं।
प्रबन्धोंमें चन्द्रप्रभमूरिका प्रभावकचरिन. मेमतुंगका प्रवन्धचिन्ताकणि, राजशंखरका प्रवन्धकोश तथा जिनप्रभसूरिका विविधतीर्थकल्प महत्त्वपूर्ण हैं। अन्य भी अनेक विपयांपर साहित्य पाया जाता है । अपभ्रंश भपाका साहित्य भी पर्याप्त है, जिसमें धनपालकी 'भविसयत्त कहा' अतिप्रसिद्ध है। स्त्रोत्र साहित्य भी विपुल है।
श्वेताम्बर सम्प्रदायका अधिकतर आवास गुजरात प्रान्तमें है ! अतः गुजराती भाषामें भी काफी साहित्य मिलता है, जिसका परिचय 'जैन गुर्जर कविओ' नामक ग्रन्थमें विस्तारके साथ है।
विदेशी भाषाओंमें भी जैन साहित्य पाया जाने लगा है। जर्मन विद्वान् म्व० हर्मन याकोबीने कई ग्रन्थोंका सम्पादन किया था। उनमें उनकी कल्पसूत्रकी प्रस्तावना तथा 'Sacred Books of east नामकी ग्रन्थमालामें प्रकाशित जनसूत्रोंकी प्रस्तावना पढ़ने योग्य है। जर्मन विद्वान प्रो० ग्लंजनपका 'जैनिज्म' भी अच्छा ग्रन्थ है। स्व० वीरचन्द्र गांधीने अमेरिका के चिकागो नगरमें हुए सर्वधर्म सम्मलनमें जो भापण जनधर्मके सम्बन्धमें दिये थे, वे 'कर्म फिलोसोफी' के नाम छप चुके हैं। न्यायावतार, सम्मतितर्क वगैरहका अंग्रेजी अनुवाद भी हो चुका है। और भी अनेक ग्रन्थ हैं। दिगम्बर साहित्य भी अंग्रेजीमें पर्याप्त है। स्व० जे० एल० जैनी और बैरिस्टर चम्पतरायने इस दिशा में उल्लेखनीय सेवा की है।
उपसंहार ___ बहुतसा जैन साहित्य अब प्रकाशमें आ रहा है और नयी शैलीसे उसका सम्पादन भी होने लगा है। प्राचीन जैन साहि