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________________ जैन साहित्य २६१ यशोविजय भी एक कुशल नैयायिक हुए हैं, इन्होंने विद्यानन्दिकी अष्टसहस्रीपर एक टिप्पण रचा है तथा नयोपदेश, नयामृततरंगिणी, तर्कपरिभाषा आदि अनेक ग्रन्थ रचे हैं। जैनधर्मके दार्शनिक सिद्धान्तोंपर इन्होंने नये दृष्टिकोणसे विचार किया है तथा नव्यन्यायकी शैलीमें भी ग्रन्थ रचे हैं। पुराण साहित्यमें विमलसूरिका पउमचरिय (पद्मचरित) एक प्राकृत काव्य है । यह प्राचीन समझा जाता है। इसमें रामचन्द्रकी कथा है । 'वसुदेव हिण्डी' भी प्राकृत भाषाका पुराण है इसमें महाभारतकी कथा है । यह भी प्राचीन है। आचार्य हेमचन्द्रका त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित भी उल्लेखनीय है। अन्य भी अनेक ग्रन्थ हैं। काव्योंमें हेमचन्द्रका द्वयाश्रय महाकाव्य, अभयदेवका जयन्तविजय, मुनिचन्द्रका शान्तिनाथचरित अच्छे काव्य समझे जाते हैं । गद्य काव्यमें धनपाल कविकी तिलकमंजरी एक सुन्दर आख्यायिका प्रन्थ है । नाटकोंमें रामचन्द्र सूरिका नल-विलास, सत्यहरिचन्द्र, राघवाभ्युदय, निर्भयव्यायोग आदिका नाम उल्लेखनीय है। जयसिंहका हम्मीरमदमर्दन एक ऐतिहासिक नाटक है। इसमें चौलुक्यराज वीरधवलके द्वारा हम्मीर नामके यवन राजाको भगानेका वर्णन है। ___लाक्षणिक ग्रन्थमें आचार्य हेमचन्द्रका काव्यानुशासन द्रष्टव्य है । कथा साहित्यका तो यहाँ भण्डार भरा है। उसमें उद्योतनसूरिकी कुवलयमाला, हरिभद्रकी समराइचकहा और पादलिप्तकी तरंगवतीकहा अति प्रसिद्ध है। कुवलयमाला नो प्राकृत साहित्यका एक अमूल्य रत्न है। यह प्राकृत भाषाके अभ्यासियोंके लिए बहुत उपयोगी है। इसी तरह आचार्य सिद्धर्षिकी उपमितिभवप्रपश्चकथा भारतीय साहित्यका प्रथम रूपक ग्रन्थ माना जाता है। व्याकरणमें आचार्य हेमचन्द्रका 'सिद्ध हेम व्याकरण' अतिप्रसिद्ध है। इसीका आठवाँ अध्याय प्राकृत व्याकरण है, जिससे
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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