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जनधर्म
बश्यक भाष्य एक उच्च कोटिका प्रन्थ है। इसमें तकपूर्ण शैलीसे ज्ञानकी सुन्दर चर्चा की गयी है । जिस तत्त्वार्थसूत्रका उल्लेख हम दिगम्बर साहित्यमें कर आये हैं, उसपर एक भाष्य भी है, जिसे कुछ विद्वान् स्वोपज्ञ मानते हैं । इसपर आचार्य सिद्धसेनगणिका तत्त्वार्थ भाष्य एक विस्तृत टीका है । आगमिक साहित्यके ऊपर भी अनेक टीकाएँ उपलब्ध हैं । नवांग वृत्तिकार श्रीअभयदेवसूरिने नौ आगमोंपर संस्कृत भाषामें सुन्दर टीकाएँ रची हैं। इस दृष्टिसे मल्लधारी हेमचन्द्रका नाम भी उल्लेखनीय है, इन्होंने भी आगमिक साहित्यपर विद्वत्तापूर्ण टीकाएँ लिखी हैं । विशेषावश्यक भाष्यपर रची इनकी टीका बहुत ही सुन्दर हैं ।
श्वेताम्बर सम्प्रदाय में कर्मविषयक साहित्य भी पर्याप्त है जिसमें कर्मप्रकृति, पंचसंग्रह, प्राचीन और नवीन कर्मग्रन्थ उल्लेखनीय हैं। १३वीं शती में श्रीदेवेन्द्रसूरिने नवीन कर्मग्रन्थोंकी रचना स्वोपज्ञ टीकाके साथ की थी। इनकी टीकाओं में कर्मसाहित्यको विपुल सामग्री संकलित है । न्यायविषयक साहित्य में सिद्धसेन दिवाकरका न्यायावतार जैनन्यायका आध ग्रन्थ माना जाता है । इनका 'सन्मति तर्क प्रकरण' भी बहुत महत्त्व - पूर्ण प्रन्थ है, इसमें आगमिक मान्यताओंको भी तर्ककी कसौटीपर कसनेका प्रयत्न किया गया है । इस प्रकरण ग्रन्थपर अभयदेवसूरिकी महत्त्वपूर्ण टीका है । इस सम्प्रदायमें हरिभद्रसूरि नामके एक प्रख्यात विद्वान् हो गये हैं। किंवदन्ती है कि इन्होंने १४०० प्रकरण प्रन्थ रचे थे । इनके उपलब्ध दार्शनिक ग्रन्थोंमें अनेकान्तवादप्रवेश, अनेकान्त जयपताका तथा शास्त्रवार्ता समुच्चयका नाम उल्लेखनीय है । तत्त्वार्थसूत्रपर भी इन्होंने एक टीका लिखी है । वादिदेव सूरिका प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार तथा उसकी स्वोपज्ञ वृत्ति स्याद्वादरत्नाकर व आचार्य हेमचन्द्रकी प्रमाणमीमांसा और मल्लिषेणसूरिकी स्याद्वादमंजरी भी न्यायशास्त्रके सुन्दर प्रन्थरत्न हैं । सतरहवीं शतीमें आचार्य