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________________ २५६ जैनधर्म रम् अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तमिल ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ साहित्यिक रीतियोंके विषयमें प्रमाणभून गिना जाता है। इसके तीन महाखंड हैं और कुल अध्याय तीस हैं। पाँच लघु काव्य हैं-यशोधरकाव्य, चूडामणि, उदयन कवै, नागकुमार काव्य और नीलकेशी। इन पाँचों काव्योंके कर्ता जैन आचार्य थे। जैन लेखकोंने तमिल भाषाका व्याकरण भी रचा है। 'नन्नोल' तमिल भापाका बहु प्रचलित व्याकरण है। यह स्कूलों और कालिजोंमें पढ़ाया जाता है। निघण्टु ग्रन्थोंमें दिवाकर निघण्टु, पिंगल निघण्टु और गुणमणि निघण्टुका नाम उल्लेखनीय है । जैनोंने गणित और ज्योतिष सम्बन्धी रचनाएँ भी की हैं । इस तरह तमिल भाषा जैन-साहित्यसे भरपूर है। गुजराती भाषामें भी दि० जैनकवियोंने अनेक रचनाएँ की हैं, जिनका विवरण 'जैनगुर्जर कविओ' से प्राप्त होता है । दिगम्बर साहित्य में हिन्दी ग्रन्थोंकी संख्या भी बहुत है। इधर ३०० वर्षों में अधिकांश ग्रन्थ हिन्दीमें ही रचे गये हैं। जैन श्रावकके लिए प्रतिदिन स्वाध्याय करना आवश्यक है। अतः जन-साधारणको भाषामें जिनवाणीको निबद्ध करनेकी चेष्टा प्रारम्भसे ही होती आयी है। इसीसे हिन्दी जैन साहित्यमें गद्यग्रन्थ बहुतायतसे पाये जाते हैं। लगभग सोलहवीं शताब्दीसे लेकर हिन्दी गद्य ग्रन्थ जैन साहित्यमें उपलब्ध हैं और इसलिए हिन्दी भाषाके क्रमिक विकासका अध्ययन करनेवालोंके लिए वे बड़े कामके हैं। सैद्धान्तिक ग्रन्थों में ऊपर गिनाये गये तत्त्वार्थसूत्र, सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, गोमट्टसार, प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय, समयसार, पटखण्डागम, कपायप्राभृत आदि महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंकी हिन्दी टीकाएँ मौजूद हैं। न्याय ग्रन्थोंमें भी परीक्षामुख; आप्तमीमांसा प्रमेयरत्नमाला, न्यायदीपिका और तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक जैसे महान ग्रन्थोंकी हिन्दी टीकाएँ उपलब्ध हैं। इन टीका ग्रन्थोंका अध्ययन केवल हिन्दी भाषा-भाषी प्रान्तोंमें ही प्रचलित नहीं है किन्तु गुजरात,
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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