________________
२५४
जैनधमं
एक नीतिपूर्ण काव्य ग्रन्थ है। आचार्य अमितगतिका सुभाषितरत्नसंदोह, पद्मनन्दि आचार्यकी पद्मनन्दि पञ्चविंशतिका और महाराज अमोघवर्षकी प्रश्नोत्तररत्नमाला भी सुन्दर नीतिग्रन्थ हैं ।
इसके सिवा ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण, कोष, छन्द, अलंकार, गणित और राजनीति आदि विषयोंपर भी जैनाचार्योकी अनेक रचनाएँ आज उपलब्ध हैं । ज्योतिष और आयुर्वेद विषयक साहित्य अभी प्रकाशमें कम आया है । व्याकरणमें पूज्यपाद देवनन्दिका जैनेन्द्र व्याकरण और शाकटायनका शाकटायन व्याकरण उल्लेखनीय है । कोषमें धनंजय नाममाला, और विश्वलोचन कोश, अलंकार में अलंकार चिन्तामणि, गणितमें महावीर गणितसार संग्रह और राजनीतिमें सोमदेवका नीतिवाक्यामृत आदि स्मरणीय हैं ।
यह तो हुआ संस्कृत और प्राकृत साहित्यका विहंगाव - लोकन |
द्रवेडियन भाषाओं में भी जैनाचार्योंने खूब रचनाएं की हैं। उन्होंके कारण एक तरहसे उन भाषाओंको महत्त्व मिला है । कनड़ी भाषामें रचना करनेवाले अति प्राचीन कवि जैन थे । कन्नड़ साहित्यको उन्नत, प्रौढ़ और परिपूर्ण बनानेका श्रेय जैनाचायों और जैन कवियोंको ही प्राप्त है। तेरहवीं शताब्दी तक कन्नड़ भाषाके जितने प्रौढ़ ग्रन्थकार हुए वे सब जैन ही थे । 'पंप भारत' सदृश महाप्रबन्ध और 'शब्दमणिदर्पण' सदृश शास्त्रीय ग्रन्थोंको देखकर जैन कवियोंके प्रति किसे आदर बुद्धि उत्पन्न नहीं होती । कर्नाटक गद्य ग्रन्थोंमें प्राचीन 'चामुण्डरायपुराण' के लेखक वीरमार्तण्ड चामुण्डराय जैन ही थे । आदि पंप, कविचक्रवर्ती रत्न, अभिनव पंप, कत्तिदेवी आदि कवि जैन ही थे ।
'कर्नाटक कवि चरिते' के मूल लेखक आर० नरसिंहाचार्य - ने जैनकवियोंके सम्बन्धमें अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा