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इन्द्रियोंको अच्छे लगते हैं उनसे बदन सामायिक अमान
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जैनधर्म और जीवरक्षाके लिये मोरके स्वयं गिरे हुए पंखोंकी एक पीछी अपने पास रखते हैं।
६-१० पाँच समिति-दिनमें सूर्य के प्रकाशसे प्रकाशित जमीनको अच्छी तरहसे देखकर चलते हैं। जब बोलते हैं तो हित और मित वचन बोलते हैं। दिनमें एक बार श्रावकके घर जाकर, यदि वह श्रद्धा और भक्तिके साथ भोजनके लिए निवेदन करे तो छियालीस दोप टालकर भोजन करते हैं। अपने कमंडलु
और पीछी वगैरहको देखभालकर हाथमें लेते हैं और देखभालकर रखते हैं। मलमूत्र वगैरह ऐसे स्थानपर करते हैं जहाँ किसीको भी उससे कष्ट पहुँचनेकी संभावना न हो।
११-१५ पाँचों इन्द्रियोंको वशमें रखते हैं जो विषय इन्द्रियोंको अच्छे लगते हैं उनसे राग नहीं करते और जो विषय इन्द्रियोंको बुरे लगते हैं उनसे द्वेष नहीं करते। ____१६-२१ छ आवश्यक-प्रतिदिन सामायिक करते हैं, तीर्थकरोंकी स्तुति करते हैं, उन्हें नमस्कार करते हैं, प्रमादसे लगे हुए दोषोंका शोधन करते हैं, भविष्यमें लग सकनेवाले दोषोंसे बचनेके लिए अयोग्य वस्तुओंका मन, वचन और कायसे त्याग करते हैं और लगे हुए दोषोंका शोधन करनेके लिए अथवा तपकी वृद्धिके लिए, अथवा कर्मोकी निर्जराके लिए कायोत्सर्ग करते हैं। खड़े होकर, दोनों भुजाओंको नीचेकी ओर लटकाकर, पैरके दोनों पंजोंको एक सीधमें चार अंगुलके अन्तरसे रखकर साधुके निश्चल आत्मध्यानमें लीन होनेको कायोत्सर्ग कहते हैं।
२२-स्नान नहीं करते। गृहस्थके घर जब आहारके लिए जाते हैं तो गृहस्थ ही उनका शरीर पोंछ देते हैं।
२३-दन्तधावन नहीं करते। भोजन करनेके समय गृहस्थके घरपर ही मुखशुद्धि कर लेते हैं।
२४-पृथ्वीपर सोते हैं। २५-खड़े होकर भोजन करते हैं।