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जैनधर्म
सुख सुख नहीं है किन्तु दुःख ही है। सच्चा सुख वह है जिसे एक बार प्राप्त कर लेनेपर फिर दुःखका भय ही नहीं रहता। इसीसे कहा है-तत्सुखं यत्र नामुखम्'। सुख वही है जिसमें दुःख न हो । धर्मसे ऐसे ही स्थायी सुखकी प्राप्ति होती है ।
२. मुक्तिका मार्ग 'संसारमें दुःख क्यों है' यह हम जान चुके हैं और यह भी जान चुके हैं कि सुखका साधन धर्म है । वह हमें दुःखोंसे छुड़ाकर सुख ही नहीं किन्तु उत्तम सुख प्राप्त करा सकता है। अब प्रश्न यह है कि दुःखोंसे छूटने और सुखको प्राप्त करनेका वह मार्ग कौनसा है, जो धर्मके नामसे पुकारा जाता है। आचार्य समन्तभद्र लिखते हैं
"सद्दष्टिज्ञानवृत्तानि धर्म धर्मेश्वरा विदुः । यदीयप्रत्यनीकानि भवन्ति भवपद्धतिः ॥३॥" -रत्नकरंड० ।
अर्थात-धर्मके प्रवर्तक सम्यग्दर्शन, सम्यकज्ञान और सम्यकचारित्रको धर्म कहते हैं। जिनके उलटे मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचरित्र संसारके मार्ग हैं।' ___ इन सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्रको ही, जो कि धर्मके नामसे कहे गये हैं, प्रसिद्ध सूत्रकार उमास्वामीने मुक्तिका मार्ग बतलाया है। असल में जो मुक्तिका मार्ग हैदुःखों और उनके कारणोंसे छूटनेका उपाय है, वही तो धर्म है। उसीको हमें समझना है।
दुःखोंसे स्थायी छुटकारा पानेक लिये सबसे प्रथम हमें यह दृढ़ श्रद्धान होना जरूरी है कि
"एगो मे सस्सदो अप्पा णाणदंसणलक्खणो। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा ॥१०२॥" -नियमसार । 'ज्ञानदर्शनमय एक अविनाशी आत्मा ही मेरा है। शुभाशुभ