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सिद्धान्त
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पानीपर सूरजकी धूप पड़ती है तो उस धूपमें जितना ताप होता है उसीके अनुसार समुद्रका पानी भापरूप बन जाता है । और जिधरकी हवा होती है उधरको हो भाप बनकर चला जाता है । फिर जहाँ कहीं भी उसे इतनी ठंड मिल जाती है कि वह पानीका पानी हो जावे वहीं पानी हो कर बरसने लगता है । फिर वह वरसा हुआ पानी स्वभावसे ही ढालको ओर बहता हुआ बहुत-सी चीजोंको अपने साथ लेता हुआ चला जाता है । और बहुता बहुता नदियोंके द्वारा समुद्रमें ही जा पहुँचता है ।
धूप, हवा, पानी और मिट्टी आदिके इन उपर्युक्त स्वभावोंसे दुनियामें लाखों करोड़ों परिवर्तन हो जाते हैं, जिनसे फिर लाखों करोड़ों काम होने लग जाते हैं। अन्य भी जिन परिवर्तनोंपर दृष्टि डालते हैं उनमें भी वस्तु स्वभावको ही कारण पाते हैं । जब संसारकी सारी वस्तुएँ और उनके गुण स्वभाव सदासे हैं और जब संसार की सारी वस्तुएँ दूसरी वस्तुओंसे प्रभावित होती हैं और दूसरी वस्तुओंपर अपना प्रभाव डालती हैं तब तो यह बात जरूरी है कि उनमें सदासे ही आदान-प्रदान होता रहता है और उसके कारण नाना परिवर्तन होते रहते हैं । यही संसारका चक्र है जो वस्तुस्वभाव के द्वारा अपने आप हो चल रहा है । किन्तु अविचारी मनुष्य उससे चकित होकर भ्रम में पड़े हुए हैं।
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विचारनेकी बात है कि जब समुद्रके पानीकी ही भाप बनकर उसका ही बादल बनता है तब यदि वस्तु स्वभाव के सिवाय कोई दूसरा ही वर्षाका प्रबन्ध करनेवाला होता तो वह कभी भी उस समुद्रपर पानी न बरसाता जिसके पानीकी भापसे ही वह बादल बना था । परन्तु देखने में तो यही आता है कि बादलको जहाँ भी इतनी ठंड मिल जाती है कि भापका पानी बन जावे वहीं वह बरस पड़ता है । यही कारण है कि वह समुद्रपर भी वरसता है और धरतीपर भी । बादलको तो इस बातका ज्ञान ही नहीं कि उसे कहाँ बरसना चाहिये और कहाँ नहीं । इसीसे कभी वर्षा