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विषय प्रवेश जिज्ञासाएँ और मीमांसाएं चलीं । वैशेषिकोंने ज्ञेयका 'षट् पदार्थके रूपमें विभाजन कर उनका तत्त्वज्ञान उपासनीय बताया तो नैयायिकोंने प्रमाण, प्रमेय आदि सोलह पदार्थोके तत्त्वज्ञानपर जोर दिया। सांख्योंने प्रकृति और पुरुषके तत्त्वज्ञानसे मुक्ति बताई, तो बौद्धोंने मुक्तिके लिए नैरात्म्यज्ञान आवश्यक समझा। वेदान्तमें ब्रह्मज्ञानसे मुक्ति होती है, तो जैनदर्शनमें सात तत्त्वोंका सम्यग्ज्ञान मोक्षकी कारणसामग्रीमें गिनाया गया है। ___ पश्चिमी दर्शनोंका उद्गम केवल कौतुक और आश्चर्यसे होता है, और उसका फैलाव दिमागी व्यायाम और बुद्धिरंजन तक ही सीमित है । कौतुकको शान्ति होनेके वाद या उसकी अपने ढंगकी व्याख्या कर रेनेके बाद पाश्चात्य दर्शनोंका कोई अन्य महान् उद्देश्य अवशिष्ट नहीं रह जाता। भारतवर्षकी भौगोलिक परिस्थितिके कारण यहाँकी प्रकृति धन-धान्य आदिसे पूर्ण समृद्ध रही है, और सादा जीवन, त्याग और आध्यात्मिकताको सुगन्ध यहाँके जनजीवनमें व्याप्त रही है। इसीलिए यहाँ प्रागैतिहासिक कालसे ही "मैं और विश्व" के सम्बन्धमें अनेक प्रकारसे चिन्तन चाल रहे हैं, और आज तक उनकी धाराएँ अविच्छिन्न रूपसे प्रवाहित हैं। पाश्चात्य दर्शनोंका उद्गम विक्रम पूर्व सातवीं शताब्दीके आसपास प्राचीन यूनान में हुआ था। इसी समय भारतवर्षमें उपनिषत्का तत्त्वज्ञान तथा श्रमणपरम्पराका आत्मज्ञान विकसित था। महावीर और
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१. “धर्मविशेषप्रसूतात् द्रव्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायानां पदार्थानां साधर्म्यवैधाभ्यां
तत्त्वज्ञानान्निःश्रेयसम् ।”–वैशे० सू० १११।४ । २. "प्रमाण-प्रमेय-संशय-प्रयोजन-दृष्टान्त-सिद्धान्त-अवयव-तर्क-निर्णय-वाद-जल्प-वितण्डाहेत्वाभास-छल-जाति-निग्रहस्थानानां तत्त्वज्ञानान्निःश्रेयसाधिगतिः ।"
-न्यायसूत्र १११।१। ३. सांख्यका० ६४ । ४. "हेतुविरोधिनैरात्म्यदर्शनं तस्य बाधकम् ।"-प्रमाणवा० १११३८ ।