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नय- विचार
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उदयमें आये हुए अर्थात् प्रकट अनुभवमें आनेवाले क्रोधादिभावोंको जीवके कहता है । पहले वैभाविकी शक्तिका आत्मासे अभेद माना है । अनगारधर्मामृतमे 'शरीर मेरा है' यह अनुपचरित असद्भूत व्यवहारका तथा 'देश मेरा है' यह उपचरित असद्भूत व्यवहारनयका उदाहरण माना गया है ।
पंचाध्यायीकार किसी दूसरे द्रव्यके गुणका दूसरे द्रव्यमे आरोप करना नयाभास मानते है । जैसे - वर्णादिको जीवके कहना, शरीरको जीवका कहना, मूर्तकर्मद्रव्यों का कर्त्ता और भोक्ता जीवको मानना, धन, धान्य, स्त्री आदिका भोक्ता और कर्त्ता जीवको मानना, ज्ञान और ज्ञेयमे बोध्यबोधक सम्बन्ध होनेसे ज्ञानको ज्ञेयगन मानना आदि, ये सब नयाभास है ।
समयसारमे तो एक शुद्धद्रव्यको निश्चयनयका विपय मानकर बाकी परनिमित्तक स्वभाव या परभाव सभीको व्यवहारके गड्ढेमे डालकर उन्हें है और अभूतार्थं कहा है । एक वात ध्यानमे रखनेकी है कि नैगमादिनयोका विवेचन वस्तुस्वरूको मीमांसा करनेकी दृष्टिसे है जव कि समयसारगत नयोंका वर्णन अध्यात्मभावनाको परिपुष्ट कर हेय और उपादेयके विचारने मोक्षमार्गमे लगानेके लक्ष्यसे है ।