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जैनदर्शन
( १ ) सन्दिग्धसाध्यान्वय -- जैसे यह पुरुष रागी है, क्योंकि वचन बोलता है, रथ्यापुरुषकी तरह ।
( २ ) सन्दिग्धसाधनान्वय -- जैसे यह पुरुष मरणधर्मा है, क्योंकि यह रागी है, रथ्यापुरुषकी तरह ।
( ३ ) सन्दिग्धोभयधर्मान्वय - जैसे यह पुरुष किंचिज्ज्ञ है, क्योंकि रागी है, रथ्यापुरुषकी तरह ।
इन अनुमानोंमे चूँकि परकी चित्तवृत्तिका जानना अत्यन्त कठिन है, अतः राग और किंचिज्ज्ञत्वकी सत्ता सन्दिग्ध है ।
( ४-६ ) इसी तरह इन्ही अनुमानोमे साध्य - साधनभूत राग और किचिज्ज्ञत्वका व्यतिरेक मन्दिग्ध होनेसे सन्दिग्धसाध्यव्यतिरेक, सन्दिग्धसाधनव्यतिरेक और सन्दिग्धोभयव्यतिरेक नामके व्यतिरेक दृष्टान्ताभास हो जाते है |
( ७ - ८ ) अप्रदशितान्वय और अप्रदर्शितव्यतिरेक भी दृष्टान्ताभास होते है, यदि व्याप्तिका ग्राहक तर्क उपस्थित न किया जाय । 'यथावत् तथा ' श्रादि शब्दों का प्रयोग न होने की वजहसे किसीको दृष्टान्ताभास नहीं कहा जा सकता; क्योंकि व्याप्तिके साधक प्रमाणकी उपस्थितिमे इन शब्दों के प्रयोगका कोई महत्त्व नही है; और इन शब्दोंका प्रयोग होनेपर भी 'यदि व्याप्तिसाधक प्रमाण नहीं है, तो वे निश्चयसे दृष्टान्ताभास हो जायेंगे ।
वादिदेवसूरिने अनन्वय और अव्यतिरेक इन दो दृष्टान्ताभासों का भी निर्देश किया है, परन्तु आचार्य हेमचन्द्र स्पष्ट लिखते है कि ये स्वतन्त्र दृष्टान्ताभास नहीं है; क्योंकि पूर्वोक्त आठ-आठ दृष्टान्ताभास अनन्वय और अव्यतिरेकके ही विस्तार है ।
उदाहरणामास :
दृष्टान्ताभासके वचनको उदाहरणाभास कहते है । उदाहरणाभासमें वस्तुगत दोष और वचनगत दोष दोनों शामिल हो सकते हैं । - अतः इन्हें