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________________ प्रमाणाभासमीमांसा ४०१ असिद्ध-साधन, असिद्धोभय तथा विपरीतान्वय ये चार साधर्म्य दृष्टान्ताभास तथा चार ही वैधर्म्य दृष्टान्ताभास इस तरह कुल आठ दृष्टान्ताभास मानते हैं । इन्होंने 'असिद्ध' शब्दसे अभाव और संशय दोनोंको ले लिया है । इनने अनन्वय और अप्रदर्शितान्वयको भी दृष्टान्त-दोषोंमें शामिल नहीं किया है। वादिदेवसूरि (प्रमाणनय० ६।६०-७९) धर्मकीर्तिकी तरह अठारह ही दृष्टान्ताभास मानते हैं। आचार्य हेमचन्द्र ( प्रमाणमो० २।१।२२-२७ ) अनन्वय और अव्यतिरेकको स्वतन्त्र दोष नहीं मानकर दृष्टान्ताभासोंको संख्या सोलह निर्धारित करते हैं । परीक्षामुखके अनुसार आठ दृष्टान्ताभास इस प्रकार हैं :'शब्द अपौरुषेय है, अमूर्तिक होनेसे' इस अनुमानमें इन्द्रियसुख, परमाणु और घट ये दृष्टान्त क्रमशः असिद्धसाध्य, असिद्धसाधन और असिद्धोभय हैं, क्योंकि इन्द्रियसुख पौरुषेय है, परमाणु मूर्तिक है तथा घड़ा पौरुषेय भी है और मूर्तिक भी है। 'जो अमूर्तिक हैं, वह अपौरुषेय हैं' ऐसा अन्वय मिलाना चाहिये, परन्तु 'जो अपौरुषेय है वह अमूर्तिक है' ऐसा विपरीतान्वय मिलाना दृष्टान्ताभास है, क्योंकि बिजली आदि अपौरुषेय होकर भी अमूत्तिक नहीं है। उक्त अनुमानमें परमाणु, इन्द्रियसुख और आकाशका दृष्टान्त क्रमशः असिद्धसाध्यव्यतिरेक, असिद्ध-साधन-व्यतिरेक और असिद्धोभय-व्यतिरेक है, क्योंकि परमाणु अपौरुषेय है, इन्द्रियसुख अमूर्तिक है, और आकाश अपौरुषेय और अमूर्तिक दोनों है । अतः इनमें उन-उन धर्मोंका व्यतिरेक असिद्ध है । 'जो अपौरुषेय नहीं हैं, वे अमूर्तिक नहीं हैं' ऐसा साध्याभावमें साधनाभावरूप व्यतिरेक दिखाया जाना चाहिए परन्तु 'जो अमूर्तिक नहीं है, वह अपौरुषेय नहीं हैं' इस प्रकारका उलटा व्यतिरेक दिखाना विपरीतव्यतिरेक दृष्टान्ताभास है, क्योंकि विजली आदिसे अतिप्रसंग दोष आता है। आचार्य हेमचन्द्रके अनुसार अन्य आठ दृष्टान्ताभास
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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