________________
संख्याभासमीमांसा
४०३
उदाहरणाभास कहने पर ही अप्रदर्शीतान्वय, विपरीतान्वय, अप्रदर्शितव्यतिरेक, विपरीत व्यतिरेक जैसे वचनदोषोंका संग्रह हो सकता है । दृष्टान्ता भासमें तो केवल वस्तुगत दोषोंका ही संग्रह होना न्याय्य है ।
बालप्रयोगाभास' :
यह पहले बताया जा चुका है कि उदाहरण, उपनय और निगमन बालबुद्धि शिष्योंके समझानेके लिए अनुमानके अवयवरूप में स्वीकार किये गये है । जो अधिकारी जितने अवयवोंसे समझते हैं, उनके लिए उनसे कमका प्रयोग बालप्रयोगाभास होगा । क्योंकि जिन्हें जितने वाक्यसे समझने की आदत पड़ी हुई है, उन्हे उससे कमका बोलना अटपटा लगेगा और उन्हें उतने मात्रसे स्पष्ट अर्थबोध भी नहीं हो सकेगा ।
आगमाभास' :
राग, द्वेष और मोहसे युक्त अप्रामाणिक पुरुषके वचनोंसे होनेवाला ज्ञान मागमाभास है । जैसे - कोई पुरुष बच्चो के उपद्रवसे तंग आकर उन्हें भगाने की इच्छासे कहे कि 'बच्चों, नदीके किनारे लड्डू बट रहे है दौड़ो ।' इसी प्रकारके राग-द्वेष- मोहप्रयुक्त वाक्य आगमाभास कहे जाते है । संख्याभास :
मुख्यरूपसे प्रमाण के दो भेद किये गये है- एक प्रत्यक्ष और दूसरा परोक्ष । इसका उल्लंघन करना अर्थात् एक, या तीन आदि प्रमाण मानना "संख्याभास है; क्योंकि एक प्रमाण मानने पर चार्वाक प्रत्यक्षसे ही परलोकादिका निषेध, परबुद्धि आदिका ज्ञान, यहाँ तक कि स्वयं प्रत्यक्षकी प्रमाणताका समर्थन भी नहीं कर सकता। इन कार्योंके लिए उसे अनुमान मानना ही पड़ेगा । इसी तरह बौद्ध, सांख्य, नैयायिक, प्राभाकर और
१. परीक्षामुख ६ । ४६-५० । २. परीक्षामुख ६।५१-५४ ।
३. परीक्षामुख ६ । ५५-६० ।