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प्रमाणाभासमीमांसा
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प्रयोग करता है तो वह भी सन्दिग्धासिद्ध है, क्योंकि सांख्यके मत में आविर्भाव और तिरोभाव शब्द ही प्रसिद्ध हैं, कृतकत्व नहीं ।
न्यायसार ( पृ० ८ ) आदिमें विशेष्यासिद्ध, विशेषणासिद्ध, आश्रयासिद्ध, आश्रयैकदेशासिद्ध, व्यर्थविशेष्यासिद्ध, व्यर्थविशेषणासिद्ध, व्यधिकरणासिद्ध और भागासिद्ध इन असिद्धके आठ भेदोंका वर्णन है । उनमें व्यर्थविशेषण तक छह भेद उन रूपोंसे सत्ताके अविद्यमान होनेके कारण स्वरूपासिद्धमें ही अन्तर्भूत हो जाते हैं । भागासिद्ध यह है - ' शब्द अनित्य है, क्योंकि वह प्रयत्नका अविनाभावी हैं ।' चूँकि इसमें अविनाभाव पाया जाता है, अतः यह सच्चा हेतु है । हाँ, यह अवश्य है कि जितने शब्दोंमें वह पाया जायगा, उतने में ही अनित्यत्व सिद्ध करेगा । जो शब्द प्रयत्नानन्तरीयक होंगे वे तो अनित्य होंगे ही ।
व्यधिकरणासिद्ध भी असिद्ध हेत्वाभास में नहीं गिनाया जाना चाहिये; क्योंकि - 'एक मुहूर्त बाद शकटका उदय होगा, इस समय कृत्तिकाका उदय होनेसे', 'ऊपर मेघवृष्टि हुई है, नीचे नदीपूर देखा जाता है' इत्यादि हेतु भिन्नाधिकरण होकर के भी अविनाभावके कारण सच्चे हेतु हैं । गम्यगमकभावका आधार अविनाभाव है, न कि भिन्न- अधिकरणता या अभिन्नाधिकरणता । 'अविद्यमानसत्ताक' का अर्थ - 'पक्ष में सत्ताका न पाया जाना नहीं है, किन्तु साध्य, दृष्टान्त या दोनोंके साथ जिसकी अविनाभाविनी सत्ता न पाई जाय उसे अविद्यमान सत्ताक कहते हैं ।
इसी तरह सन्दिग्धविशेष्यासिद्ध आदिका सन्दिग्धासिद्धमें ही अन्तर्भाव कर लेना चाहिए | ये असिद्ध कुछ अन्यतरासिद्ध और कुछ उभयासिद्ध होते हैं । वादी जब तक प्रमाणके द्वारा अपने हेतुको प्रतिवादीके लिए सिद्ध नहीं कर देता, तबतक वह अन्यतरासिद्ध कहा जा सकता है ।
(२) विरुद्ध — "अन्यथाभावात्" ( प्रमाणसं० श्लो० ४८ ) - साध्याभावमें पाया जाने वाला । जैसे- 'सब क्षणिक हैं सत् होनेसे' यहाँ सत्त्व हेतु सर्वथा क्षणिकत्वके विपक्षी कथञ्चित् क्षणिकत्वमें पाया जाता है ।