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अनुमानप्रमाणमीमांसा
३३७ पदार्थसे वह जिसके बिना नहीं होता उस अविनाभावी अदृष्ट अर्थकी कल्पना करना अर्थापत्ति है । इससे अतीन्द्रिय शक्ति आदि पदार्थोका ज्ञान किया जाता है । यह छह प्रकारकी है
(१) प्रत्यक्षपूर्विका अर्थापत्ति-प्रत्यक्षसे ज्ञात दाहके द्वारा अग्निमें दहनशक्तिकी कल्पना करना। शक्ति प्रत्यक्षसे नही जानी जा सकती; क्योंकि वह अतीन्द्रिय है।
(२) अनुमानपूर्विका अर्थापत्ति-एक देशसे दूसरे देशको प्राप्त होनारूप हेतुसे सूर्यमे गतिका अनुमान करके फिर उस गतिसे सूर्यमे गमनशक्तिकी कल्पना करना।
(३) श्रुतार्थापत्ति-'देवदत्त दिनको नहीं खाता, फिर भी मोटा है' इस वाक्यको सुनकर उसके रात्रिभोजनका ज्ञान करना ।
(४) उपमानार्थापत्ति-गवयसे उपमित गौमें उस ज्ञानके विषय होनेकी शक्तिको कल्पना करना।
(५) अर्थापत्तिपूर्विका अर्थापत्ति-'शब्द वाचकशक्तियुक्त है, अन्यथा उससे अर्थप्रतीति नही हो सकती। इस अर्थापत्तिसे सिद्ध वाचकशक्तिसे शब्दमें नित्यत्व सिद्ध करना अर्थात् 'शब्द नित्य है, वाचकशक्ति अन्यथा नही हो सकती' यह प्रतीति करना।
(६) अभावपविका अर्थापत्ति-अभाव प्रमाणके द्वारा जीवित चैत्रका घरमें अभाव जानकर उसके बाहर होनेकी कल्पना करना।
इन अर्थापत्तियोंमें अविनाभाव उसी समय गृहीत होता है । लिंगका अविनाभाव दृष्टान्तमें पहलेसे ही निश्चित कर लिया जाता है जब कि
१. मी० श्लो० अर्था० श्लो०३।। २. मी० श्लो० अर्था० श्लो० ३। ३. मी० श्लो. अर्था० श्लो० ५१ । ४. मो० श्लो० अर्था० श्लो० ४ । ५. मी० श्लो० अर्था० श्लो० ५-८ । ६. मी० श्लो० अर्था० श्लो० ९। ७. मी० श्लो० अर्था० श्लो० ३० ।
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