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संवरतत्त्व-निरूपण
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अतिरिक्त समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषहजय और चारित्र आदिसे भी संवर होता है । समिति आदिमें जितना निवृत्तिका अंश है उतना संवरका कारण होता है और प्रवृत्तिका अंश शुभ बन्धका हेतु होता है ।
समिति :
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समिति अर्थात् सम्यक् प्रवृत्ति, सावधानीसे कार्य करना । समिति पाँच प्रकारकी है । ईर्या समिति - चार हाथ श्रागे देखकर चलना । भाषा समिति — हित- मित- प्रिय वचन बोलना । एषणा समिति - विधिपूर्वक निर्दोष आहार लेना | आदान- निक्षेपण समिति — देख - शोधकर किसी वस्तुका रखना, उठाना । उत्सर्ग समिति - देख शोधकर निर्जन्तु स्थानपर मलमूत्रादिका विसर्जन करना ।
धर्म :
आत्मस्वरूपकी ओर ले जानेवाले और समाजको संधारण करनेवाले विचार और प्रवृत्तियाँ धर्म है । धर्म दश है । उत्तमक्षमा — क्रोधका त्याग करना । क्रोधके कारण उपस्थित होनेपर वस्तुस्वरूपका विचार - कर विवेकजलसे उसे शान्त करना । जो क्षमा कायरताके कारण हो और आत्मामें दीनता उत्पन्न करे वह धर्म नहीं है, वह क्षमाभास है, दूषण है । उत्तम मार्दव - मृदुता, कोमलता, विनयभाव, मानका त्याग । ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप और शरीर आदिको किंचित् विशिष्टता के कारण आत्मस्वरूपको न भूलना, इनका मद न चढ़ने देना । अहंकार दोप है और स्वभिमान गुण । अहंकार में दूसरेका तिरस्कार छिपा है और स्वाभिमानमें दूसरेके मानका सम्मान है । उत्तम आर्जव - ऋजुता, सरलता, मायाचारका त्याग | मन वचन और कायकी कुटिलताको छोड़ना । जो मनमें हो, वही वचनमें और तदनुसार ही कायकी चेष्टा हो, जीवन-व्यवहार में एकरूपता हो
सरलता गुण