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७. तत्त्व-निरूपण
तत्त्वव्यवस्थाका प्रयोजन :
पदार्थव्यवस्थाको दृष्टिसे यह विश्व पद्रव्यमय है, परन्तु मुमुक्षुको जिनके तत्त्वज्ञानको आवश्यकता मुक्तिके लिए है, वे तत्त्व सात हैं। जिस प्रकार रोगीको रोग-मुक्तिके लिए रोग, रोगके कारण, रोगमुक्ति और रोगमुक्तिका उपाय इन चार बातोंका जानना चिकित्साशास्त्रमें आवश्यक बताया है, उसी तरह मोक्षकी प्राप्तिके लिए संसार, संसारके कारण, मोक्ष और मोक्षके उपाय इस मूलभूत चतुव्यूहका जानना नितान्त आवश्यक है । विश्वव्यवस्था और तत्त्वनिरूपणके जुदे-जुदे प्रयोजन हैं । विश्वव्यवस्थाका ज्ञान न होनेपर भी तत्त्वज्ञानसे मोक्षको साधना की जा सकती है, पर तत्त्वज्ञान न होनेपर विश्वव्यवस्थाका समग्र ज्ञान भी निरर्थक और अनर्थक हो सकता है।
रोगीके लिए सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि वह अपनेको रोगो समझे। जब तक उसे अपने रोगका भान नहीं होता, तब तक वह चिकित्साके लिए प्रवृत्त ही नहीं हो सकता। रोगके ज्ञानके बाद रोगीको यह जानना भी आवश्यक है कि उसका रोग नष्ट हो सकता है। रोगकी साध्यताका ज्ञान ही उसे चिकित्सामें प्रवृत्ति कराता है। रोगीको यह जानना भी आवश्यक है कि यह रोग अमुक कारणोंसे उत्पन्न हुआ है, जिससे वह भविष्यमें उन अपथ्य आहार-विहारोंसे वचा रहकर अपनेको निरोग रख सके । रोगको नष्ट करनेके उपायभूत औषधोपचारका ज्ञान तो आवश्यक है ही; तभी तो मौजूदा रोगका औषधोपचारसे समूल नाश करके वह स्थिर आरोग्यको पा सकता है। इसी तरह 'आत्मा बंधा है, इन कारणोंसे बँधा है, वह बन्धन टूट सकता है और इन उपायोंसे