SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवद्रव्य विवेचन १९७ सिद्ध करना असम्भव है, और बौद्धों के यहाँ इतनी भिन्नता है कि अमुक क्षणके साथ अमुक क्षणका उपादान - उपादेयभाव बनना कठिन है । इसी तरह नैयायिकों के अवयवी द्रव्यका अमुक अवयवोंके ही साथ समवायसम्बन्ध सिद्ध करना इसलिए कठिन है कि उनमें परस्पर अत्यन्त भेद माना गया है । इस तरह जैन दर्शन में ये जीवादि छह द्रव्य प्रमाणके प्रमेय माने गये हैं । ये सामान्य विशेषात्मक और गुणपर्यायात्मक हैं । गुण और पर्याय द्रव्यसे कथञ्जित्तादात्म्य सम्बन्ध रखनेके कारण सत् तो हैं, पर वे द्रव्यकी तरह मौलिक नहीं हैं, किन्तु द्रव्यांश है । ये ही अनेकान्तात्मक पदार्थ प्रमेय हैं और इन्हींके एक-एक धर्मों में नयोंकी प्रवृत्ति होती है । जैनदर्शनको दृष्टिमें द्रव्य ही एकमात्र मौलिक पदार्थ है, शेष गुण, कर्म, सामान्य, समवाय आदि उमी द्रव्यकी पर्यायें हैं, स्वतंत्र पदार्थ नहीं है ।
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy