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जैनदर्शन शब्द शक्तिरूप नहीं है:
शब्द केवल शक्ति नहीं है, किन्तु शक्तिमान् पुद्गलद्रव्य-स्कन्ध हैं, जो वायु स्कन्धके द्वारा देशान्तरको जाता हुआ आमपासके वातावरणको झनझनाता जाता है। यन्त्रोंसे उसकी गति बढ़ाई जा सकती है और उमकी सूक्ष्म लहरको मुदर देशसे पकड़ा जा सकता है। दक्नाके ताल आदिके संयोगसे उत्पन्न हुआ एक मन्द मग्वमे बाहर निकलते ही चारों तरफके वातावरणको उमी शब्द कर देता है। वह स्वयं भी नियत दिशामें जाता है ओर जाते-जाते, गव्दसे शब्द और शव्दमे गब्द पैदा करता जाता है । शब्दके जानेका अध पर्यायवाले स्कन्धका जाना है और शब्दकी उत्पत्तिका भी अर्थ है आसपासके स्कन्धोंमें गब्दपर्यायका उत्पन्न होना । तात्पर्य यह कि शब्द स्वयं द्रव्यकी पर्याय है, और इस पर्यायके आधार है पुद्गल स्कन्ध । अमृतिक आकाशके गुणमे ये सव नाटक नहीं हो सकते। अमूर्त द्रव्यका गुण तो अमूर्त ही होगा, वह मूर्त्तके द्वारा गृहीत नहीं हो सकता।
विश्वका समस्त वातावरण गतिशील पुद्गलपरमाणु और स्कन्धोंसे निर्मित है । उसीमे परस्पर मंयोग आदि निमित्तोसे गर्मी, सर्दी, प्रकाश, अन्धकार, छाया आदि पर्याय उत्पन्न होती और नष्ट होती रहती हैं। गर्मी, प्रकाश और शब्द ये केवल शक्तियाँ नहीं है, क्योंकि शक्तियाँ निराश्रय नहीं रह सकतीं। वे तो किसी-न-किसी आधारमें रहेंगी और उनका आधार है-यह पुद्गल द्रव्य । परमाणुकी गति एक समयमें लोकान्त तक ( चौदह राजु ) हो सकती है, और वह गतिकालमें आसपामके वातावरणको प्रभावित करता है । प्रकाश और शब्दको गतिका जो लेखा-जोखा आजके विज्ञानने लगाया है, वह परमाणुको इम स्वाभाविक गतिका एक अल्प अंश है। प्रकाश और गर्मीके स्कन्ध एकदेशसे सुदूर देश तक जाते हुए अपने वेग ( force ) के अनुसार वातावरणको