________________
जीवद्रव्य विवेचन
१६५ द्रव्य परिणामी है । उसी तरह ये पुद्गल द्रव्य भी उस परिणमनके अपवाद नहीं हैं और प्रतिक्षण उपयुक्त स्थूल-बादरादि स्कन्धोंके रूपमें बनते बिगड़ते रहते हैं। शब्द आदि पुद्गलकी पर्याय हैं :
'शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, प्रकाश, उद्योत और गर्मी आदि पुद्गल द्रव्यकी ही पर्यायें हैं। शब्दको वैशेषिक आदि आकाशका गुण मानते हैं, किन्तु आजके विज्ञानने अपने रेडियो और ग्रामाफोन आदि विविध यन्त्रोंसे शब्दको पकड़कर और उसे इष्ट स्थानमें भेजकर उसको पौद्गलिकता प्रयोगसे सिद्ध कर दी है । यह शब्द पुद्गलके द्वारा ग्रहण किया जाता है, पुद्गलसे धारण किया जाता है, पुद्गलोंसे रुकता है, पुद्गलोंको रोकता है, पुद्गल कान आदिके पर्दोको फाड़ देता है और पौद्गलिक वातावरणमें अनुकम्पन पैदा करता है, अतः पौद्गलिक है । स्कन्धोंके परस्पर संयोग, संघर्षण और विभागसे शब्द उत्पन्न होता है । जिह्वा और ताल आदि के संयोगसे नाना प्रकारके भाषात्मक प्रायोगिक शब्द उत्पन्न होते है। इसके उत्पादक उपादान कारण तथा स्थूल निमित्त कारण दोनों ही पौद्गलिक हैं।
जब दो स्कन्धोंके संघर्पसे कोई एक शब्द उत्पन्न होता है, तो वह आस-पासके स्कन्धोंको अपनी शक्तिके अनुमार शब्दायमान कर देता है, अर्थात् उसके निमित्तसे उन स्कन्धों में भी शब्दपर्याय उत्पन्न हो जाती है। जैसे जलाशयमें एक कंकड़ डालने पर जो प्रथम लहर उत्पन्न होती है, वह अपनी गतिशक्तिसे पासके जलको क्रमशः तरंगित करती जाती है
और यह 'वीचीतरंगन्याय' किसी-न-किसी रूपमें अपने वेगके अनुसार काफी दूर तक चालू रहता है। १. "शब्दबन्धसौक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोधोतवन्तश्च ।"
-तत्त्वार्थसूत्र ५।२४ ॥