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________________ ६. षद्रव्य विवेचन छह द्रव्य ___द्रव्यका सामान्य लक्षण यह है-जो मौलिक पदार्थ अपनी पर्यायोंको क्रमशः प्राप्त हो वह द्रव्य है । द्रव्य उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यसे युक्त होता है । इसका विशेष विवेचन पहले किया जा चुका है। उसके मूल छह भेद हैं-१. जीव, २. पुद्गल, ३. धर्म, ४. अधर्म, ५. आकाश और ६. काल । ये छहों द्रव्य प्रमेय होते है। १. जीव द्रव्य : जीव द्रव्यको, जिसे आत्मा भी कहते हैं, जैनदर्शनमें एक स्वतंत्र मौलिक माना है। उसका सामान्यलक्षण उपयोग है। उपयोग अर्थात् चैतन्यपरिणति । चैतन्य ही जीवका असाधारण गुण है जिससे वह समस्त जड़द्रव्योंसे अपना पृथक् अस्तित्व रखता है। बाह्य और आभ्यन्तर कारणोंसे इस चैतन्यके ज्ञान और दर्शन रूपसे दो परिणमन होते हैं । जिस समय चैतन्य 'स्व' से भिन्न किसी ज्ञेयको जानता है उस समय वह 'ज्ञान' कहलाता है और जब चैतन्य मात्र चैतन्याकार रहता है, तब वह 'दर्शन' कहलाता है । जीव असंख्यात प्रदेश वाला है। चूंकि उसका अनादिकालसे सूक्ष्म कार्मण शीरीरसे सम्बन्ध है, अतः वह कर्मोदयसे प्राप्त १. “अपरिचत्तसहावेणुप्पायव्वयधुवत्तसंजुत्तं । गुणवं च सपज्जायं जं तं दव्वं ति बुच्चंति ॥३॥" -प्रवचनसार । "दवियदि गच्छदि ताई ताई सब्भावपज्जयाई ।"-पंचा० गा०९ । २. "उपयोगो लक्षणम्"-तत्त्वार्थसूत्र २।८ ।
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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