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पदार्थका स्वरूप
दो सामान्य :
दो विभिन्न द्रव्यों में अनुगत व्यवहार करानेवाला सादृश्यास्तित्व होता है, इसे तिर्यक् सामान्य या सादृश्यसामान्य कहते हैं । अनेक स्वतन्त्रसत्ताक द्रव्योंमें 'गौः गौः ' या ' मनुष्यः मनुष्यः' इस प्रकारके अनुगत व्यवहारके किसी नित्य, एक और अनेकानुगत गोत्व या मनुष्यत्व नामके सामान्यकी कल्पना करना उचित नहीं है; क्योंकि दो स्वतंत्र सत्तावाले द्रव्योंमें अनस्यूत कोई एक पदार्थ हो ही नहीं सकता । वह उन दोनों द्रव्योंकी संयुक्त पर्याय तो कहा नहीं जा सकता; क्योंकि एक पर्याय में दो अतिभिन्नक्षेत्रवर्ती द्रव्य उपादान नहीं होते । फिर अनुगत व्यवहार तो संकेतग्रह्णके बाद होता है । जिस व्यक्तिने अनेक मनुष्योंमें बहुतसे अवयवोंकी समानता देखकर सादृश्य की कल्पना की है, उसोको उस मादृश्यके संस्कार के कारण 'मनुष्यः मनुष्यः' ऐसी अनुगत प्रतीति होती है । अतः दो विभिन्न द्रव्योंमें अनुगतप्रतीति होती है । अत: दो विभिन्न द्रव्योंमें अनुगत प्रतीतिका कारणभूत सादृश्यास्तित्व मानना चाहिए, जो कि प्रत्येक द्रव्यमें परिसमाप्त होता है । ऊर्ध्वता सामान्य, जो स्वरूपास्तित्वरूप है, ऊपर कहा जा चुका है । इस तरह दो सामान्य है |
दो विशेष :
इसी तरह एक द्रव्यकी पर्यायोंमें कालक्रमसे व्यावृत्त प्रत्यय करानेवाला पर्याय नामका विशेष है । दो द्रव्योंमें व्यावृत्त प्रत्यय कराने वाला व्यतिरेक नामका विशेष है । तात्पर्य यह है कि एक द्रव्यकी दो पर्यायोंमें अनुगत प्रत्यय ऊर्ध्वता' सामान्यसे होता है और व्यावृत्तप्रत्यय पर्याय नामके विशेषसे । दो विभिन्न द्रव्योंमें अनुवृत्त प्रत्यय तिर्यक् सामान्य
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१. “परापरविवर्तव्यापि द्रव्यम् ऊर्ध्वता मृदिव स्थासादिषु ।” - परी० ४।५ । “एकस्मिन् द्रव्ये क्रमभाविनः परिणामाः पर्यायाः आत्मनि हर्षविषादादिवत् ।”
२.
-परी० ४।८ ।
३. “सदृशपरिणामस्तिर्यक् खण्डमुण्डादिषु गोत्ववत् । " - परी० ४।४ ।