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लोकव्यवस्था
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प्राप्त नहीं हो सकती । तीसरा शिलान्यास है कि पदार्थ और गति पृथक्पृथक् नहीं रह सकती । बिना गतिके पदार्थ नहीं और बिना पदार्थके गति नहीं । चौथा शिलान्यास है कि जिसका नाश नहीं वह कभी पैदा भी नहीं हुआ होगा, जो अविनाशी है वह अनुत्पन्न है । यदि ये चारों बातें यथार्थ है तो उनका यह परिणाम अवश्य निकलता है कि — पदार्थ और गति सदा से है और सदा रहेगे । वे न बढ सकते है और न घट सकते है । इससे यह भी परिणाम निकलता है कि न कोई चीज कभी उत्पन्न हुई है और न उत्पन्न हो सकती है और न कभी कोई रचयिता हुआ है और न हो सकता है । इससे यह भी परिणाम निकलता है कि पदार्थ और गतिके पीछे न कोई योजना हो सकती थी और न कोई बुद्धि । बिना गतिके बुद्धि नहीं हो सकती । बिना पदार्थके गति नहीं हो सकती । इसलिये पदार्थसे पहले किसी भी तरह किसी बुद्धिकी, किसी गतिकी संभावना हो ही नहीं सकती । इससे यह परिणाम निकलता है कि प्रकृतिसे परे न कुछ है और न हो सकता है । यदि ये चारो शिलान्यास यथार्थ बातें है तो प्रकृतिका कोई स्वामी नही । यदि पदार्थ और गति अनादि कालसे अनन्त काल तक है तो यह अनिवार्य परिणाम निकलता है कि कोई परमात्मा नही है और न किसी परमात्माने जगतको रचा है और न कोई इसपर शासन करता हैं । ऐसा कोई परमात्मा नहीं, जो प्रार्थनाएँ सुनता हो । दूसरे शब्दों में इससे यह सिद्ध होता है कि आदमीको भगवान् से कभी कोई सहायता नहीं मिली, तमाम प्रार्थनाएँ अनन्त आकाशमे यो ही विलीन हो गई ।''यदि पदार्थ और गति सदासे चली आई है तो इसका यह मतलब है कि जो संभव था वह हुआ है, जो संभव है वह हो रहा है और जो संभव होगा वही होगा । विश्वमे कोई भी बात यो ही अचानक नहीं होती । हर घटना जनित होती है । जो नही हुआ वह हो ही नहीं सकता था । वर्तमान तमाम भूतका अवश्यंभावी परिणाम है और भविष्यका अवश्यं - भावी कारण ।