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लोकव्यवस्था
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अर्थ निकलता है कि एक विशेष प्रकारको योजना और विशेष प्रकारको व्यवस्था है। वस्तुको योजनाका आकलन होना ही वस्तुस्वरूपका आकलन है । विश्वकी रचना अथवा योजना किसी दूसरेने नहीं की है। अग्नि जलाना स्वाभाविक धर्म है। यह एक व्यवस्था अथवा योजना है । यह व्यवस्था किंवा योजना अग्निमें किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा लाई हुई नहीं है। यह तो अग्निके अस्तित्वका ही एक पहलू है । संख्या, परिमाण एवं कार्यकारणभाव वस्तु स्वरूपके अंग है । हम संख्या वस्तुमें उत्पन्न नहीं कर सकते, वह वस्तुमें रहती ही है। वस्तुओंके कार्यकारणभावको पहिचाना जा सकता है किन्तु निर्माण नहीं किया जा सकता।" जड़वादका आधुनिक रूप :
महापण्डित राहुल सांकृत्यायनने अपनी वैज्ञानिक भौतिकवाद पुस्तक में भौतिकवादके आधुनिकतम स्वरूपपर प्रकाश डालते हुए बताया है कि "जगत्का प्रत्येक परिवर्तन जिन सीढ़ियोंसे गुजरता है वे सीढ़ियाँ वैज्ञानिक भौतिकवादको त्रिपुटी हैं। (१) विरोधी समागम (२) गुणात्मक परिवर्तन और ( ३ ) प्रतिषेधका प्रतिषेध । वस्तुके उदरमें विरोधी प्रवृत्तियां जमा होती हैं, इससे परिवर्तनके लिए सबसे आवश्यक चीज गति पैदा होती है । फिर हेगेलको द्वंद्ववादी प्रक्रियाके वाद और प्रतिवादके संघर्षसे नया गुण पैदा होता है । इसे दूसरी सीढ़ी गुणात्मक परिवर्तन कहते हैं। पहले जो वाद था उसको भी उसकी पूर्वगामी कड़ीसे मिलानेपर वह किसीका प्रतिषेध करनेवाला संवाद था । अब गुणात्मक परिवर्तन-आमूल परिवर्तन जबसे उसका प्रतिषेध हुआ तो यह प्रतिषेधका प्रतिषेध है । दो या अधिक, एक दूसरेसे गुण और स्वभावमें विरोधी वस्तुओंका समागम दुनियामें पाया जाता है । यह बात हरएक आदमीको जब तब नजर आती है । किन्तु उसे देखकर यह ख्याल नहीं आता कि एक बार इस विरोधी
१. देखो, 'जड़वाद और अनीश्वरवाद' पृष्ठ ६०-६६ । २ पृ० ४५-४६ ।