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________________ ७४ जैनदर्शन बाह्य सामग्रीका प्रबल निमित्त नहीं मिलता उस समय भी द्रव्य अपने स्वभावानुसार सदृश या विसदृश परिणमन करता ही है । कोई सफेद कपड़ा एक दिनमें मैला होता है, तो यह नहीं मानना चाहिए कि वह २३ घण्टा ५६ मिनिट तो साफ रहा और आखिरी मिनिटमें मैला हुआ है; किन्तु प्रतिक्षण उममें सदृश या विसदृश परिवर्तन होते रहे हैं और २४ घण्टेके समान या असमान परिणमनोंका औसत फल वह मैलापन है। इसी तरह मनुष्यमें भी बचपन, जवानी और वृद्धावस्था आदि स्थूल परिणमन प्रतिक्षणभावी असंख्य सूक्ष्म परिणमनोंके फल हैं। तात्पर्य यह कि प्रत्येक द्रव्य अपने परिणमनमें उपादान होता है और सजातीय या विजातीय निमित्तके अनुसार प्रभावित होकर या प्रभावित करके परस्पर परिणमनमें निमित्त बनता जाता है । यह निमित्तोंका जुटाव कहीं परस्पर संयोगसे होता है तो कहीं किसी पुरुषके प्रयत्नसे । जैसे किसी हाइड्रोजनके स्कन्धके पास हवाके झोंकेसे उड़कर आँक्सिजन स्कन्ध पहुँच जाय तो दोनोंका जलरूप परिणमन हो जायगा, और यदि न पहुँचे तो दोनोंका अपने-अपने रूप ही अद्वितीय परिणमन होता रहता है । यह भी संभव है कि कोई वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशालामें ऑक्सिजनमें हाइड्रोजन मिलावे और इस तरह दोनोंकी जल पर्याय बन जाय । अग्नि है, यदि उसमें गीला ईधन स्वयं या किसी पुरुषके प्रयत्नसे पहुँच जाय तो धूम उत्पन्न हो जायगा, अन्यथा अग्नि धीरे-धीरे राख हो जायगी । कोई द्रव्य जबरदस्ती किसी दूसरे द्रव्यमें असंभवनीय परिवर्तन उत्पन्न नहीं कर सकता। प्रयत्न करनेपर भी अचेतनसे चेतन नहीं बन सकता और न एक चेतन चेतनान्तर या अचेतन या अचेतन अचेतनान्तर ही हो सकता है। सब अपनी-अपनी पर्यायधारामें प्रवहमान है । वे प्रत्येक क्षणमें नवीन-नवीन पर्यायोंको धारण करते हुए स्वमग्न हैं । वे एक-दूसरेके सम्भवनीय परिणमनके प्रकट करनेमें निमित्त हो भी जाय, पर असंभव या असत् परिणमन उत्पन्न नहीं कर सकते । आचार्य कुन्दकुन्दने बहुत सुन्दर लिखा है
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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