________________
भारतीय दर्शनको जैनदर्शनकी देन तत्त्वाधिगमके उपाय : ___ जैनदर्शनने पदार्थके वास्तविक स्वरूपका सूक्ष्म विवेचन तो किया ही है । साथ-ही-साथ उन पदार्थोके जानने, देखने, समझने और समझानेकी दृष्टियोंका भी स्पष्ट वर्णन किया है। इनमे नय और सप्तभंगोका विवेचन अपना विशिष्ट स्थान रखता है। प्रमाणके साथ नयोंको भी तत्त्वाधिगमके उपायोंमे गिनाना जैनदर्शनकी अपनी विशेषता है। अखण्ड वस्तुको ग्रहण करनेके कारण प्रमाण तो मक है। वस्तुको अनेक दृष्टियोंसे व्यवहारमें उतारना अंशग्राही सापेक्ष नयोंका ही कार्य है । नय प्रमाणके द्वारा गहीत वस्तुको विभाजित कर उसके एक-एक अंशको ग्रहण करते है और उसे शब्दव्यवहारका विषय बनाते है । नयोंके भेद-प्रभेदोंका विशेष विवेचन करनेवाले नयचक्र, नयविवरण आदि अनेक ग्रन्थ और प्रकरण जैनदर्शनके कोषागारको उद्भासित कर रहे है । ( विस्तृत विवेचनके लिए देखो, नयमीमांसा प्रकरण )।
इस तरह जैनदर्शनने वस्तु-स्वरूपके विचारमे अनेक मौलिक दृष्टियाँ भारतीय दर्शनको दी है, जिनसे भारतीय दर्शनका कोषागार जीवनोपयोगी ही नहीं, समाज-रचना और विश्वशान्तिके मौलिक तत्त्वोंसे समृद्ध बना है । इति ।