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६० . जैनागमों मै स्याबाट मूलम्-दो भते ! पुस्सिा सरिसया सरित्तया सरिव्यय
सरिसभंडमत्तोवगरणा अनमन्नेण सद्धिं संगामं संगामेन्ति, तत्थ ण एगे पुरिसे पराइणइ एगे पुरिसे पराडज्जड, से कहमयं भते ! एव ?, गोयमा सवीरिए पराइणइ अवीरिए पराइज्जइ, से केणठेण जाव पराइज्नइ ?, गोयमा ! जस्स णं बोरियज्झाई कम्माई णो बद्धाई पुट्ठोइ जाव नो अभिममन्नागयाइ नो उदिन्नाई उवसंताई भवन्ति से णं पराइणइ, जस्स एं वीरियवज्झाई कामाई वद्धाइ जाव उदिन्नाई नो उपसंताई भवन्ति से ण पुरिसे पराइजइ से तेणटठेणं गोयमा! एवं बुच्चइ सवीरिए पराइणइ. अवीरिए पराउजइ ।।
-श्री भगवती सूत्र १६७० टीका-'सरिमयति सहशको कौशलप्रमाणादिना 'सरित्यत्ति 'सदृक्त्वचौ, सदृशच्छा सरिव्वय' त्ति सहग्वयसौ समानयौवनाद्यवस्थौ 'सरिसभंडमत्तोबगरण'ति भाण्र्ड-भाजन मन्मयादि मात्रो-मात्रया युक्त उपधि म च कम्यिभाजनादिभोजनभाण्डका भाण्डमात्रा वा--गणिमादिद्रव्यरूप परिच्छेदः उपकरणानि अनेकवाऽऽवरणप्रहरणादीनि तत सहशानि भाण्डमात्रोपकरणानि ययोस्तौ तथा, अनेन च समानविभूतिकर्व