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श्री भगवती सूत्र मूलम्-रायगिहे नगरे समोसरणं, परिसा निग्गयो जाव
एवं वयामी--जीवे णं भन्ते ! सयंकडं दुक्खं वेदेइ १, गोयम ! अत्थेगइय वेएइ अत्येगइयं नो वेएइ, से केण हुण भते । एवं वुच्चय--अत्थेगइय
वेदेइ अत्थेगइयं नो वेएइ ?, गोयमा ! उदिन्न · चेएइ अनुदिन्न नो वएइ, से तेणहणं एवं वुच्चइ
अत्थेगइय वेएइ अत्थेगतिय नो वेएइ, एवं चउव्वीसदडएण जीव वेमाणिए ॥ जीवा णं भंते । सयकडं दुक्ख वेएन्ति ?, गोयमा ! अत्यंगइयं
यति अत्थे ाइय णो वेयंति, से केणणं?, गोयमा! उदिन्नं वेयन्ति नो अणुदिन्नं वेयन्ति,से तेणहणं,एवं जाव वेमाणिया II जीव णं भंते ! सयंव ड आउय
एइ ? गोयमा ! अत्थेगइय वेएइ अत्थेगइय नो वेएइ जहा दुक्खेण दो दंडगा तहा आउएणवि दो दंडगा एगत्तपुहुत्तिया, एगत्तेणं जाव वेमाणिया पुहुत्ते णवि तहेव !!
_श्री भगवती सूत्र शतक १, उहेश २, सूत्र २० ।।