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________________ साधुवादार्थ दो शब्द I स्थानकवासी जैन-संप्रदाय के अगमाभ्यासी विद्वानों में पूज्य आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज का नाम विशेष उल्लेखनीय है आप आगमों के विशिष्ट अभ्यासी और गम्भीर पर्यालोचक हैं | तत्त्वार्थ सूत्र का जैनागम - समन्वय (जोकि आप के द्वारा संपादित हुआ है) आपके जैनागम-संबन्धि असाधारण चिन्तन और मनन का ही विशिष्ट फल है। इसके अतिरिक्त आप ने आगमों के विवेचनीय विषयों से सबन्ध रखने वाले कतिपय मौलिक और अनुवाद रूप ग्रंथों के निर्माण से स्थानकवासी सप्रदाय के प्रसुप्त कलेवर मे अभूतपूर्व जागृति उत्पन्न करने का भी पर्याप्त श्रेय प्राप्त किया है । आजसे कुछ समय पहले मैने आप से प्रार्थना की थी कि यदि आप जैनागमों मे विभिन्न स्थानों पर विद्यमान मूल पाठों और खासकर स्याद्वाद अनेकान्त-वाद विषय के उल्लेखों को-- उन पर की गई पूर्वाचार्यों की व्याख्या के साथ -एक जगह संगृहीत कर के एक पुस्तक के आकार में प्रकाशित करा देवें तो जैनदर्शन का तुलनात्मक पद्धति से अभ्या स करने वाले विद्यार्थियों और तात्त्विक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से जैनधर्म के मौलिक स्वरूप की गवेषणा करने वाले विशिष्ट विद्वानों के लिये आप की यह पर्व देन होगी । उन्हें इस के लिये अधिक परिश्रम न करना पड़ेगा और यत्न- साध्य वस्तु अनायास ही प्राप्त हो जायगी । इस के सिवाय आर्य संस्कृति के विशिष्ट अग-भूत जैन - संस्कृति मे विद्यमान दार्शनिक विचारों की प्राचीन प्रणाली से अज्ञात मैनेतर विद्वानों को उस के --
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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