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________________ जैन-जीवन कुमारीको अपने घर ले आया। नौजवान लड़की को देखते ही सैनिककी स्त्री झगड़ा करने लगी एवं वात-बात मे चन्दनवालाको हैरान करने लगी । उसके मनमें सन्देह हो गया था कि कहीं यह मेरे घरकी स्वामिनी न बन बैठे । एक दिन सैनिकसे वह कहने लगी कि चम्पाकी विजयके उपलक्षमे धन राशिके बदले तुम मेरे लिए यह झगड़ा लाए हो । जाओ । इसे आजकी आज वेचकर २० लाख मोहरें लाओ अन्यथा मैं मर जाऊँगी ! भयंकर क्लेश देखकर राजकुमारी घरसे निकल पड़ी और पीछे-पीछे रोता हुआ वह सैनिक भी । कोई खरीदो ! बाजारके बीच खड़ी होकर महासती कहने लगी- अरे लोगों । मुझे कोई खरीदो और मेरे बापको वीस लाख मोहरें दो । मै नौकरका हरएक काम कर दूँगी । बाजार मे मेला-सा लग रहा था | इतनेमे एक वेश्याने आकर उसे खरीद लिया । कन्याने पूछा- माताजी! मुझे क्या काम करना होगा ? 1 वेश्या - काम और कुछ भी नही है, एक मात्र आए हुए मनुष्योंका दिल खुश करना होगा । - चन्दनबाला – माताजी ! मैं सती हूँ, यह काम नही कर सकती । वेश्या -- सौदा हो चुका व तुझे मै हर्गिज नहीं छोड़गी । वेश्याकी दासियां सतीको जबरदस्ती पकड़ने लगीं, तब सतीने प्रभुका ध्यान कर लिया। देवशक्तिसे अचानक बन्दर आए और वेश्याके शरीरको नोच डाला एवं रोती
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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