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________________ प्रसङ्ग अठारहवां श्री गौतमस्वामी : गौतमस्वामीका नाम जैनजगत् में बहुत प्रसिद्ध है जो भग-. वान् महावीरको जानते हैं प्रायः वे गौतमस्वामीको जानते ही हैं। चौदह हजार साधुओं में मुख्य होते हुए भी उनकी निरभिमाता अवर्णनीय थी, चार ज्ञान और चौदहपूर्वके धारक होते हुए भी उनका विनय अनूठा था तथा विचित्रलब्धियोंके भण्डार होते हुए भी उनकी क्षमा अद्भुत थी । वे हर एक बात भन्ते ! न्ति ! कहकर कितने विनयके साथ प्रभुसे पूछा करते थे और भु गोयमा ! गोयमा ! सम्बोधन करके कितनी वत्सलता के साथ उत्तर देते थे, जैनशास्त्रोंका अध्ययन करनेसे ही उसका पता चल सकता है। वे कौन थे ? बिहार प्रान्तके गोबर ग्राममे पृथ्वी माताकी कुक्षि द्वारा इन्द्रके सपने से उन्होंने जन्म लिया था । उनके पिताका नाम वसुभूति था एवं वे जाति से ब्राह्मण थे । यद्यपि इन्द्र- स्वप्नके अनुसार उनका नाम इन्द्रभूति रखा गया था, फिर भी गौतम गोत्र होनेके कारण जैनजगत् में इन्द्रभूति की अपेक्षा गौतमस्वामी विशेष प्रसिद्ध हो गया। दो छोटे भाई थे, उनका नाम अग्निभूति एवं वायुभूति था । इन्द्रभूति वेद और वेदान्तके अद्भुत वेत्ता । वे पाँच सौ छात्रोंको पढ़ाते थे तथा स्वर्गकी इच्छासे अनेक प्रकार के यज्ञ किया करते थे ।
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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