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________________ S जैन-जीवन यज्ञमें चोभ नगरी में मोमिलाके यहां इन्द्रभूति एकदा यदि ग्यारह माह्मण यह कर रहे थे। इधर केवलज्ञान होते ही भगवान महावीरका वा समयमर हुआ। दर्शनार्थ इन्द्रादिदेवना आने लगे। उन्हें देखकर इन्द्रभृति कहने लगे - से मव देवना हमारे बाकी आहुति लेने या रहे है। किन्तु उन्हें ऊपरके ऊपर जाते देखकर उन्होंने अपने साथियोंसे पत्रा - तब किसीने यह दिया कि एक इन्द्रजालिकने श्रावर इन्द्रजाल खोला है- ये नव उमीके पास जा रहे है । चुध होकर इन्द्रभूति बोले- परे ! यह कौनसा इन्द्रजालिक बाकी रह गया, जब कि मैंने दुनियां मरटे विद्वानोंको जीन लिया । इन्द्रभूति प्रभुके पास इस प्रकार विद्या मदसे गर्जते हुए इन्द्रभूति पाच-नी लान परिवार ज्यों ही प्रभुके समयमरण में प्रविष्ट हुए, वे से हो गए और सोचने लगे - क्या यह णा है ? विष्णु है ? महेश है ? सूर्य है ? चन्द्र है ? इन्द्र है ? या कुबेर है ? नहीं !! वे के चिन्ह न होने तो नहीं है किन्तु सर्व an area भगवान् महावीर है । क्या करें ? का बार्गे? इनका तेज तो बढ़ने नहीं देता और यम जमी होगी। ऐसे विचारही रहे थे कि इन्द्रमृति !? यतो - पार नहीं था और रहते यदि सेमेरीकाका समाधान
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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