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जैन-नीषन
चातुर्मास किया। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशीको रातके बारह बजे प्रभु चौविहारमंधारा करके अमृतवर्मणी वाणी से लगातार सोलह पहर तक उपदेश दिया, जिसे अनेक देवता और मनुष्य सुनते रहे। ऐसे मान-गुनाते-सुनाते कार्तिक कृष्णा श्रमावस्था रातके बारह बजे आठ कमको पाकर प्रभु निर्वाणको प्राप्त हो गए। निर्माण महोत्सव करनेके लिये इन्द्रादि देवता आए । मन रत्नोंके प्रकाशसे अँधेरी श्रमावस्था मी दिवाली नामका पर्व बन गई। भगवान महावीरकी नदी पर श्री ( जो पांचवें गणधर थे ) बैठाए गये ।
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