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प्रसङ्ग सोलहवां प्रदेशीके प्रश्न
स्वर्ग, नरक, पुण्य, पाप, म्यात्मा व परमात्माको माननेवाला प्रातिन होता है और न माननेवाला नास्तिक होता है। प्रदेश पनि राजनीतिकोंका सरदार था । उसके दिलमें
दयाका निशान तक नहीं था और मनुष्यको मारना उसके लिए तिनका तोड़नेके समान था । चित्त नामका विमातृज भाई उसका मन्त्री था, जो वा मारी धर्मात्मा एवं श्रास्तिक था । सावत्थमें केशीस्वामी
श्री
roat कार्य राजमन्त्री गायत्री नगरी गया। वहां भगवान्के संतानिक-शिष्य श्रीस्वामी धर्मप्रचार कर रहे थे, जो चतुर्ज्ञानवारी थे । पता लगने पर चित्र- प्रधानने उनका उपदेश सुना और भावकके व्रत महण किए । मन्त्रीने देश जाते समय गुरुजीसे नगरी पधारनेकी प्रार्थना की। शेत लाभ समक कर केशीस्वामी वहां पधारे और राजाके वागम ठहरे। अवसर देखकर घोड़ोंकी परीक्षाके बहाने दीवान राजाकी यागने से आया ।
ये जड़-मूह - कौन हैं ?
राजाने दूरसे गुनियो देखकर पूछा- भाई! ये जढ़-मूढमेरा नारा याग रोक लिया, अब मैं यहां अनेका-ये जेनी नाग
नर आत्मा परमात्मा बने हैं। उनके मत जी और
सूर्य कौन है? और
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