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________________ प्रसङ्ग पन्द्रहवां केवलज्ञान शुक्लध्यानसे घातिककर्मोंका नाश करके चौरासी दिनके । बाद प्रभुने केवलज्ञान पाया एव भाव-अरिहन्त वनकर चार तीर्थ • स्थापित किये । उनके शासनकालमे ‘सोलह हजार साधु हुए, अड़तीस हजार साध्वियों हुई, एक लाख चौंसठ हजार श्रावक हुए और तीन लाख उनचालीस हजार श्राविकाएँ हुई। प्रभु सत्तर वर्ष संयम पाल कर एक हजार मुनियोंके साथ सम्मेदशिखर पर्वत पर निर्वाणको प्राप्त हुए । पार्श्वनाथ प्रभुका स्मरण बहुत ही आनन्दकारी है, आचार्योंने इनके एकसे एक बढ़ते-चढ़ते अनेक स्तोत्र बनाए हैं, उनमें उपसर्गहर स्तोत्र एव कल्याणमन्दिर स्तोत्र बहुत ही प्रभावशाली है। ----- - - - - STA vt. .. P
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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