________________
प्रसङ्ग चौदहवां
आई । उसके साथ पॉच-भोगी पुरुष थे, जो उससे भोगकी प्रार्थना कर रहे थे। साध्वीकी दृष्टि उन पर पड़ी और दिलमें विचार हुआ कि इसके पीछे पॉच-पॉच पुरुष पागल हो रहे हैं और मेरे पास एक भिखारी भी नहीं ठहरता। अगर मेरी तपस्याका फल हो तो अगले जन्ममें मुझे भी पाच पति प्राप्त हों। भोगकी तीव्र अभिलापाके वश उसने यह निदान कर लिया। विराधक होकर भर गई एवं तपस्याके प्रभावसे दूसरे स्वर्गमे देवीं बनी।
द्रुपद राजाके घर । सुकुमालिका स्वर्गसे च्यवकर द्रुपद राजाकी पुत्री द्रौपदी हुई। वर्ण काला था इससे वह कृष्णा भी कहलाई। इसका रूपलावण्य अद्भुत और आकर्षक था। यौवन आने पर स्वयंवर हुआ, अर्जुनने राधावेध किया एवं द्रौपदीने उसके गलेमे माला पहना दी। पहनाई तो थी एक अर्जुनके गले में, किन्तु दिव्य प्रमावसे पांचोंके गलेमें दीखने लगी । दर्शकोंने शोर किया तब
आकाशवाणीने कहा- भवितव्यतावश इसके पॉच पति ही होंगे। इतनेमें आकाशमार्गसे एक मुनि आए । एवं कृष्णादिके पूछने पर उन्होंने पिछले जन्मका सारा हाल सुनाया और फिर सर्वसम्मतिसे पांचों पाण्डवोंके साथ द्रौपदीका विवाह हुआ । अस्तु ।