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________________ जैन-जीवन द्रोपदीको भी दावमें खजाना, गांव, नगर, भाई, द्रौपदी एवं स्वयंको भी उन्होंने पासिर दावमें लगा दिया और वे हार गए। दुर्योधनने द्रोपदीको राजसभामें नग्न करना चाहा, किन्तु उसके शीलके वलसे सादी से माड़ी निकलती ही गई। आखिर भीष्मपिता-- मह 'प्रादि वृद्धौने पापीको रोका और बारा वर्ष तक पाएडवोंको चनवास जानेका निर्णय दिया वे बुदको भी हार गए। अतः तेरहवें वर्ष कहीं छिपकर रहना होगा- यह आदेश दुर्योधनने विशेषरूपसे दिया और पाएडयोंने माना। साथ-साथ यह भी वय हो गया था कि वनवासके बाद राप्य यापम लौटा दिया जाएगा। पाएडव वनवासमें कर्मकी अजय महिमा है, जिमने धर्मपुत्र-जैसे धर्मिष्टोका भी घरवार छुड़वा दिया। पांचों पाएटव, पुन्ती और द्रोपदी यनमें गए । द्रौपदीफ पुत्रोंको उनका मामा टान ले गया एवं नुमद्रा और अभिमन्युरो श्रीकृषण ले गए। बनवासी बनाकर भी दुर्योधन सन्तुष्ट न हुश्रा। वारणायतनगररथ लाक्षागृह में रम फर इन्हें भम्म करना चाहा, किन्तु चाचा विदुरकी कृपासे : मानों जीवित बच गए और उनके बदले दूसरे सात जीव मारे गये। बनमें फिरतं ममय मीमने यि एवं बरु राक्षसको मारा माविमा राप्मीसे विचार किया, उसका पुत्र वीर धोमध
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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