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प्रसङ्ग तेरहवां
दुर्योधनकी दुष्टता - लाक्षागृहसे बचे सुनकर दुर्योधन गोकुल देखनेके बहाने फौज लेकर पाण्डवोंको मारने वनमें गया, किन्तु वहाँ खुद ही पकड़ा गया और फिर उसे वीर अर्जुनने छुड़ाया। पापीने मौका पाकर कृत्या राक्षसीको भिजवाया, लेकिन पुण्योंसे पाण्डव बच गए, प्रत्युत वह भेजनेवाले सुरोचन पुरोहितको खा गई। ऐसे ही अनेकों कष्टोंका सामना करते-करते बारह वर्ष बीत गए एवं अब वे गुप्तरूपसे विराटनगरमें तेरहवां वर्ष व्यतीत करने लगे। धर्मपुत्र पुरोहित थे, भीम रसोईदार थे, अर्जुन बृहन्नट ( नपुंसक) बनकर राजकन्या उत्तराको पढ़ाते थे। नकुल-सहदेव अश्वरक्षक एव गोरक्षकके रूपमें काम करते थे। द्रौपदी दासीके रूपमें महारानीके पास रहती थी एवं उसका नाम सैरन्ध्री था।.
' कीचक और मल्लका बध , .
महारानीका भाई राजा कीचक द्रौपदीसे कुछ छेड़-छाड़ करने लगा। मौका पाकर द्रौपदीके रूपसे भीमने उसको पृथ्वी पर पछाड़ कर मार दिया। इधर पाण्डवोंका पता लगाने एक मल्ल भेजा गया । उसको कुश्ती करके भीमने खत्म कर दिया। फिर दुर्योधनने गौओंकी चोरी की, उसमें भी पाण्डवों द्वारा कौरवोंकी काफी मरम्मत हुई और उन्हें शर्मिंदा होकर भागना पड़ा।
श्रीकृष्ण दूतके रूपमें तेरहवां वर्ष बीतने पर पाण्डव प्रकट हो गए। कृष्ण-द्रपद