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'प्रसङ्ग दसवां
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रानी के आग्रहसे पुत्रको लेकर महाराज वसुदेव चले और यमुना पार करके नन्दरानी यशोदाको वह पुत्ररत्न सौंप दिया एवं उसके बदलेमे उसकी नवजात-पुत्रीको लेकर लौट आए ।
छिननाशिका पहरेदार जागे और कन्याको लेकर कंसके पास आए। देखते ही वह चौंककर कहने लगा, क्या यह बालिका मुझे मारेगी? नहीं! नहीं! कभी नहीं मार सकती। यू मन ही मन समाधान करके उसे छिन्ननाशिका बनाकर वापस लौटा दिया। इधर गोकुलमें श्री कृष्ण सानन्द बढ़ने लगे और एक ग्वालके वेपमें ग्वालवालोंके साथ बचपन विताने लगे। उनका नाश करनेके लिए शकुनि, पूतना आदि अनेक शत्रु वहां आए, लेकिन सारे पराजित हुए। शत्रुओंका भेद पाकर कृष्णके बड़े माई बलभद्रजी गोकुलमे रहकर उनकी रक्षा करने लगे और उन्हें पढ़ाने भी लगे।
देवकीके घर कंस एक दिन राजा कंस कार्यवश देवकीके घर आया। वहां वह छिन्ननाशिका नजर चढ़ी। तुरन्त ही उसे मुनिकी कही हुई बात याद आ गई एवं उसका दिल धड़कने लगा। घर आकर ज्योतिपीसे पूछा कि भाई ! क्या पड्यन्त्र है ? तुम अपने ज्ञानसे बतलाओ! क्या मेरा शत्रु जीवित है ? तथा अगर है, तो मैं उसे कैसे पहचान सकता हूँ ? ज्योतिषीने कहा-जो तेरे वृपभ, अश्व, हस्ति-युगल, खर, मेप और मल्ल-युगलको मारेगा एवं कालिय-नाग