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________________ जैन-जीवन का दमन करेगा, वही तेरा हन्ना होगा। वह जीवित है और मारनेसे भर भी नहीं सकता। कंस घबराकर वृषभ, अश्व आदि भेजता गया और कृष्ण उन्हें मारते गये। पाखिर उसने मल्लयुद्ध रवाया। समाचार सुनकर ग्वालबालोंके साथ कृष्ण-बलभद्रभी यहां पाए और बात ही बातमें दोनों मल्लोको दोनों भाइयोंने मार डाला । यह धमनान देवकर कंसने चिल्लाकर कहा-अरे सुभटों पकड़ो! पकड़ो! ये ही मेरे दुश्मन है। बस, पापी चिल्ला ही रहा था कि कृष्णन दौडकर उसको भी पकड़ लिया और पृथ्वी पर पन्छादकर यमके द्वार भेज दिया। फिर कंसके पिता राजा अनती (जो फंसने कैद कर रखाथा) मुक्त बनाकर मथुराका राज्य दिया एवं उनकी सुपुत्री सत्यभामासे विवाह करके वे सपरिवार गरि पा गये । इस समय बादय हर्पले फूले नहीं समा रहे थे। फरियाद घर कंतकी महारानी रोती-पीटती अपने पिताके पास गई और उसने कृष्ण के द्वारा सके मारे जानेकी बात कही। वान नुनते ही राजा सासने पैर का बदला लेने के लिए अपने पुत्र कापामारको मन्त्र भेजा। वह मौरिपुर श्राया तो यादः यता नहीं मिने। पूछने पर पता लगा कि वे महाराज जरासन्धन माध वैमनस्य होने की वजह से शहर छोड़कर सौराष्ट्रकी तरफ भाग गये। ग. कालियकुमार उनके पीछे-पीछ हो गया जाते-जाने बदन का अनर रह गया, तब वादोंकी कुलदेवी भिम चिता बनाकर मालियामारने कहा कि यादव र भयर
SR No.010340
Book TitleJain Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanrajmuni
PublisherChunnilal Bhomraj Bothra
Publication Year1962
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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