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जैन जीवन
तरफ देखने लगे। इधर कुमारीने जाते ही उस पुतलीका ढक्कन गोला। बस, सोलते ही सड़े हुए अनाजकी ऐसी बदबू आई कि सारे नाक बन्द करके मुह बिगाडने लगे। तंव मल्लीभरीने इंस कर पहा-आप लोग मुह क्यों बिगाड़ रहे हैं ? बदबू ही से तो न? अब बतलाए। जिल मेरे शरीर पर श्राप मोहित होरहे हैं उसमे हाइ-मांस, मल-मूत्र आदि अशुचि-पदाकि सिवा और कौन-सी अच्छी चीज़ है छोडिए इस स्पके मोहको और कीजिए अपने पूर्वजन्मको याद ! जब हम सातों मित्र-मुनि मिल कर चोरतपस्या कर रहे थे, तब मने पापक साथ तपस्याम कुन्छ माया (कपट) की थी प्रतः तीर्थकररूपसे अवतरित होकर मी में न्त्री बन गई। बस ! सुनते-सुनते ही हों नरशों को पूर्वजन्मका मान होगना और सारा खेल ही बदल गया।
दीक्षा और मुक्ति मलिप्रभुने सयम लिया और घानिकम्मका क्षय करके अरिहन्तपदको प्राप्त किया। उधर छहों राजा भी साधु बनकर प्रभु भागे गण वर कहलाए। प्रभु सौ वर्ष तक बरमे रहे और नामी वर्ष मयम पालकर गगनगिर पर्वत पर गणधरों सहित मोक्ष पधारे। जय हो! जय हो ! श्रीमल्लिप्रभुकी।
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